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________________ menrannan ज्यू सूरज मध्याहनमे, दिपै अनंत प्रभाव । त्यों तुम ज्ञानकला दिप,मिथ्यातिमिरप्रभाव ॥ॐ ह्रीं प्रहं मास्वते नम'मध्य २३४ । २८९ । चहुँविधि देवनमे सदा, तुम सम देव न पान । निजानंदमे केलिकर, पूजत हूँ धरि ध्यान ॥ॐ ह्रीं अहंप्रभुतदेवाय नम अध्या२५३ विश्व ज्ञात युगपत धरै, ज्पू दर्पण प्राकार । स्वपर प्रकाशकहोसही, नमूभक्ति उरधार ॥ॐ ह्री अहं विश्वज्ञातृमम्भृतेन म पy सत स्वरूप सत ज्ञान है, तुम ही पूज्य प्रधान । पूजत है नित विश्वजन, देव मान परमान ॥ ह्रीं प्रहविश्वदेवाय नम. अय।२३७ सृष्टिको सुख करत हो, हरत दुक्ख भववास । मोक्ष लक्षमी देत हो, जन्म जरा मृत नास ॥ॐह्रीं मह सृष्टिनिवृत्तायनम अध्या२३ ॥ ६ इन्द्र सहस लोचन किये, निरखत रूप अपार । अष्टम मोक्ष लहै सो नेमतें, मै पूजू मनधार ॥ॐ ह्रीं महं सहवासद्गुरसहाय नमःमगा२३६ पूजा संपरण निज शक्ति के है परताप अनन्त । १२६ सो तुम विस्तीररण करो, नमे चरण नित संत ॥ॐ ह्री प्रहसवंशक्तयेनम अयं २४० runninninnininnaruwa
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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