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भम विन ज्ञान प्रकाश मे, भासै जीव अजी। सिद्ध । संशय विन निश्चल सुखी,बंदूसिद्ध सदीव ॥ ह्रींगहनि सशयाय नम अध्यं ।।१४
तुम पूरण परमातमा, सदा रहो इक सार । जरा न व्यापै तुम विषै,नमसिद्ध अविकार॥ॐ ह्रीं पहँ निर्जराय नम अयं । ६५।। है तुम पूरण परमात्मा, अन्त कभी नहीं होय ।
मरण रहित बंदूंसदा, देउ अमरपदसोय ॥ ॐही अहं अमराय नम.प्रय ||६|| निजानन्द के भोगमें कभी न भारत पाय । यातें तुम अरतीत हो, बंदू सिद्ध सुहाय ॥ॐ ह्री अहं प्ररत्यतीतायनम प्रध्यं ।।६।।
होत नहीं सोच न कभू, ज्ञान धरै परतक्ष । इनमसिद्ध परमात्मा, पाऊं ज्ञान अलक्ष ॥ॐ ह्री अहं निश्चिताय नमःमध्यं ।।८।।
जानत है सब ज्ञेयको, पर ज्ञेयनतै भिन्न । यातें निविषयी कहे, लेश न भोगै अन्य ।। ह्रीं महं निर्विषयाय नम अध्यं ।।६॥ अष्ट, अहंकार प्रादिक त्रिषट्, तुम पद निवसै नाहि ।
३ पूजा सिद्ध भये परमात्मा मै, बन्दूहूँ ताहि ॥ॐ ह्री अहं त्रिषष्टिजिते नम अध्यं ॥१०॥
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