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पूरण आत्मकला परकाशी, लोक विषअतिशय अविनाशी। साधु॥ सिद्ध
ॐ ह्रो साधुलोकोत्तमातिशयाय नम अध्यं ॥४६॥ वि०
राग विरोध न चेतन माही, ब्रह्म कहो जग उत्तम ताही । साधु ॥ २३६
ओ ह्री साधुलोकोत्तमब्रह्मज्ञानाय नमः प्रय॑ ।।४३७॥ ज्ञान स्वरूप अकम्प अडोला, पूरण ब्रह्म प्रकाश अटोला ।साधु.॥
ॐ ह्री साधुलोत्तमब्रह्मज्ञानस्वरूपाय नम अध्यं ।।४ ८॥ राग विरोध जयो शिवगामी, आत्म अनातम अन्तरजामी। साधु.॥
ॐ ह्री साधुलोकोत्तमजिनाय नम अयं ।।४२६। भेद विना गुरण भेद धरो हो, सांख्य कुवादिक पक्ष हरो हो । साधु.।।
ॐ ह्री साधुलोकोत्तमगुणसम्पन्नाय नमा अध्यं ॥४४०।। साधत बातम पुरुष सखाई, उत्तम पुरुष कहो जग ताई । साधु.॥
ॐ ह्री साधुलोकोत्तमपुरुषाय नमोऽयं ॥४४१।। । साधु समान न दीनदयाला, शरण गहै सुख होत विशाला । साधु ॥ सप्तमी
ॐ ह्री साधुलोकोत्तमशरणाय नमोऽय॑ ।।४४२॥ जे जन साधु शरण गही है, ते शिव आनन्द लब्धि लही है। साधु.॥
ॐ ह्री साधुलोकोत्तमगुणशरणाय नमोऽयं ।।४३।।
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