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सिद्ध विक
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स्वपर हितकार गुणधारी, परम कल्याण अविकारी । पूर्ण श्रुतंज्ञान बल पाया, नमूसत्यार्थ उवझाया ॥ - प्रो ह्री पाठककल्याणगुणाय नम अर्घ्य ॥ ३७० ।। अहित परिहार पद जो है, परम कल्यारण तासो है । पूर्ण.
ओ ह्री पाठककल्याणस्वरूपाय नम. अयं ।। ३७१।। स्वसुख द्रव्याश्रये माहीं, जहां कछु पर निर्मित्त नाहीं। पूर्ण.
ओ ह्री पाठककल्यागा द्रव्याय नम, अध्यं ।। ३७२।। । जोहै सोहै अमित काला,, अन्यथा, भाव विधि टाला । पूर्ण.
___ ओ ह्री पाठकतत्त्वगुणाय नम अयं ॥ ३७३ ।। रहै नित चेतना माहीं, कहै चिद् प मुनि ताहीं। पूर्ण.
ओ ह्री पाठकचिद्र पाय नम अयं ॥ ३७४ ।।. सर्वथा ज्ञान परिणामी, प्रकट हैं चेतना नामी। पूर्ण.
. ॐ ह्रो पाठकचेतनाय नमोऽप्रय॑ ॥३७५॥ नहीं अन्यत्व भेदा है, गुणी गुरण निरविछेदा है। पूर्ण.
ॐ ह्री पाठकचेतनागुणाय नमोऽप्रय ||३७६।।
षष्ठम्
पूजा २३०
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