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समय समय गुणश्रेणिका, खिरै कर्म बल ध्यान । ये सम्बन्ध निवार करि, करै मुक्ति सुख पान ॥२६०॥
__ॐ ह्री सूरिनिर्जरानुबधाय नम अयं । अतुल शक्ति थिर भावकी, सो प्रगटी तुम माहि । यही निर्जरा रूप है, नमूभक्ति कर ताहि ॥२६२॥
ॐ ह्री सूरिनिजरास्वरूपाय नम अध्यं । सर्व कर्म के नाश विन, लहै न शिव-सुखरास । निश्चय तुम ही निर्जरा, कियो प्रतीत प्रकाश ॥२६२॥
ॐही सूरिनिजराप्रतीताय नम अयं । सकल कर्ममल नाशर्ते, शुद्ध निरंजन रूप । ज्यो कचन विन कालिमा, राजै मोक्ष अनूप ॥२६३॥
ॐ ह्री सूरिमोक्षाय नम. अयं । द्रव्य भाव दोनो सुविधि, करै जगतमे वास । द्वै विध बन्ध उखारके, भये मुक्त सुखरास ॥२६४॥
ॐ ह्री सूरिबन्धमोशाय नम. अर्ध्य ।
सप्तमी
पूजा