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ॐ ह्री द्वितीये वृत्ते गणधर कुण्डे आह्वनीयाग्नयेऽयं निर्वपामीति स्वाहा । सिद्धार उपजाति-श्रीदक्षिणाग्निः परकल्पितश्च-, किरीटदेशात्प्रणताग्निदेवः। वि० निर्वाण-कल्याणक-पूतकाले, तमर्चये विघ्न-विनाशनाय ।। २५. ॐ ह्री त्रिकोणे सामान्यकेवलिकुण्डे दक्षिणाग्नयेऽयं नि० अब निम्न आहूतिया चालू करे ।
अथ पीठिका मन्त्र ॐ सत्यजाताय नम ॥१॥ ॐअर्हज्जाताय नम ॥२।। ॐपरमजाताय नमः ॥३॥ * अनुपमजाताय नम ॥४॥ ॐ स्वप्रधानाय नम ||५|| ॐ अचलाय नम ॥६॥ ॐ अक्षयाय नम ॥७॥ॐ अव्यावाधाय नम ||८|| ॐ अनन्तज्ञानाय नम |||| ॐ अनन्तदर्शनाय नम ॥१०॥ ॐ अनन्तवीर्याय नम ॥११॥ ॐ अनन्तसुखाय नम ॥१२।। ॐ नीरजसे नम ॥१३॥ ॐ निर्मलाय नम ||१४|| ॐ अच्छेद्याय नम ||१५|| अभेद्याय नम ॥१६।। । ॐ अजराय नम ॥१७॥ ॐ अमराय नम ॥१८।। ॐ अप्रमेयाय नम ॥१६।। ॐ अगर्भवासाय नम ॥२०॥ ॐ अक्षोभाय नम ।।२१।। ॐ अविलीनाय नम ॥२२।। परम-6 धनाय नम ॥२३।। ॐ परमकाष्ठायोगरूपाय नम ॥२४॥ ॐ लोकाग्रवासिने नमो नम : ॥२५॥ ॐ परमसिद्वेभ्यो नम ॥२६।। ॐ अर्हसिद्धेभ्यो नमो नम ॥२७॥ ॐ केवलिसिद्धेभ्यो नम ||२८|| ॐ अतकृतसिद्धेभ्यो नमो नम ॥२६॥ॐ परम्परासिद्वेभ्यो नमो नम ॥३०॥ ॐ अनादिपरम्परासिद्ध भ्यो नमो नम ॥३१।। ॐ अनाद्यनुपमसिद्धेभ्यो नमो नमः ॥३२॥ ॐ सम्यग्दृष्टे आसन्न भव्यनिर्वाणपूजार्ह-अग्नीद्राय स्वाहा ॥३३॥
सेवाफल षट्परमस्थान भवतु, अपमृत्युविनाशन भवतु, समाविमरणं भवतु स्वाहा ।
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