________________
सिद
वि.
wanna
जगजिय ताप निवारण कारण विलसे अन्तरसै। देव सुधा सम गुण निवाहकर, सकल चराचरसै । सूरि०।२६५॥
ॐ ह्री सूरिसुधागुणाय नम अयं । जा धुनि सुनि संशय विनस जिम ताप मेघ वरसै। मनहुँ कमल मकरंद बृन्द अली पाय सुधारससै । सूरि०।२६६।
* ह्रीं सूरिसुधाध्वनये नम अर्घ्य । अजर अमर सुखदाय भाय मन ज्यो मयर हरसै,
. गाजत घन बाजत ध्वनि सुनि मनु भाजत भय उरसै । सूरि०।२६७।
ॐ ह्री सूरिअमृतध्वनिसुरूपाय नमः अध्य" । (चकोर छंद)-जो अपने गुण वा पर्याय, वरै निज धर्म न होत विनास।
द्रव्य कहावत है सु अनंत स्वभाव धरे निज प्रात्म विलास ॥ सूरि कहाय सु कम खिपाइ, निजातम पायगय शिवधाम । सु प्रातमराम सदाअभिराम भये सुख काम नमूवसु जाम ॥
___ॐ ही मूरिद्रव्याय नम अध्यं ।। २६८।।
marr
षष्ठम पूजा २१२