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सिद्ध वि०
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पद्धडी छन्द। जिन निज आतम निष्पाप कीन, ते सन्त कर पर पाप छोन।। शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही प्रानंद पूर॥२३७॥
ॐ ही सूरिमगलशरणाय नम अन्य। रत्नत्रय जीव सुभावभाय, भवि पतित उधारण हो सहाय । शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही पानंद पूर ॥२३॥
___ॐ ह्री सूरिधर्मशरणाय नमः अगं । तपकर ज्यो कंचन अग्नि जोग, व शुद्ध निजातम पद मनोग। शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही आनंद पूर ॥२३६॥
ॐ ह्री मूरितपशरणाय नमः प्रध्य । एकाग्र-चित्त चिन्ता निरोध, पावै अवाध शिव आत्म बोध । शिवमग प्रगटन आदित्य सूर, हम शरण गही आनंद पूर ॥२४०॥
ॐ ह्री सूरिध्यानशरणाय नमः अध्य। केवलज्ञानादि विभूति पाइ, हवं शुद्ध निरंजन पद सुखाइ। शिवमग प्रगटन प्रादित्य सूर, हम शरण गही पानंद पूर ॥२४१॥
___ॐ ह्री सूरिसिद्धशरणाय नमः प्रध्यं ।
मतमा
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