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मिद्ध वि० २०६
भेदाभेद स नय थकी, एक ही धर्म विचार। पायो.सरि सबोध करि, भवदधि करि उद्धार ॥२३२॥ ___ॐ ह्री सूरिधर्मस्वरूपशरणाय नमः अयं । अन्य समस्त विकल्प तजि, केवल निजपद लीन । पूरण ज्ञान स्वरूप यह, पायोरि सुधीन ॥२३३॥
ॐ ह्री सूरिज्ञानस्वरूपाय नम अयं । सुखाभास इन्द्रीजनित, त्यागी 'सूरि महन्त । पूरण सुख स्वाधीन निज, साध्य भये सुखवन्त ॥२३४॥
___ॐ ह्री सूरिसुखस्वरूपाय नम अयं । अनेकात तत्त्वार्थ के, ज्ञाता सूरि महान । निरावर्ण निजरूप लखि, पायो पद निरवारण ॥२३॥
___ ॐ ह्री सूरिदर्शनस्वरूपाय नम अयं ।। मोहादिक रिपु नाशिके, सूर्य महा सामर्थ । शिव भामिन भरतार नित, रमै साध निज अर्थ ॥२३६॥
ॐ ह्री सूरिवीर्यस्वरूपाय नम अध्यं ।
मप्तमी
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