________________
N
वि०
१८६
लोकत्रय शिरं छत्र मरिण लोकत्रय वर पूज्य प्रधाने । लोकोत्तम परसिद्ध हो परसिद्धराज, सुखसाज बखाने ॥१५४॥
ॐ ह्री सिद्धलोकोत्तमेभ्यो नम अयं । अमल अनूप तेजघन, निरावरण निजरूप प्रमाने । लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने ॥१५॥
___ ॐ ह्री सिद्धलोकोत्तमस्वरूपाय नम' पय॑ । लोकालोक प्रकाश कर, लोकातीत प्रत्यक्ष प्रमाने । 'लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने॥१५६॥
__ॐ ह्री सिद्धलोकोत्तमज्ञानाय नम अध्यं । सकल दर्शनावरण विन, पुरन-दरसन जोत उगाने । लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने ॥१५७॥
____ॐ ह्री सिद्धलोकोत्तमदर्शनाय नम अयं । अतुल अतीन्द्रिय वीरजकर, भोग तिन शिवनारि अघाने । लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने ॥१५॥
ॐ ह्री सिद्धलोकोत्तमवीर्याय नमः अध्यं । लोकत्रय शिर छत्रमणि, लोकत्रय वर पूज्य बखाने-यह पाठ भी मिलता है ।