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सिद्ध वि०
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हे जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१५०॥
ॐ ह्री सिद्धमगल-अष्टरूपेभ्यो नम अध्यं । मंगल अरहन्तं अष्टम भन्तं, 'सिद्ध अष्ट गुरण भास । ये ही बिलसावै, अन्य न पावै, असाधारण परकाश ॥ हे जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार। मैं नम त्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१५१॥
ॐ ह्री मिद्धमगल अष्टप्रकाशकेभ्यो नम. अर्घ्य । निर आकुलताई सुख अधिकाई, परम शुद्ध परिणाम । संसार निवारण बन्ध विडारन, यही धर्म सुखधाम ॥ हे जगत्रय नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मैं नम त्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१५२॥
ॐ ह्री सिद्धमगलधर्मभ्यो नम अर्घ्य । . (चूलिका छंद)-तीनकाल तिहुँलोकमे तुमगुण और न माहि लखाने। लोकोत्तम परसिद्ध हो, सिद्धराज सुख साज बखाने ॥१५३॥
ही सिद्धलोकोत्तमगुणणेभ्यो नमः अध्य।
ससमो