SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सद्धार वि.5 inuncannow जिन ध्यायो तिन पाइयो, निस्सय सो सुखरास । शरण स्वरूपी जिन नम, करै सदा शिववास ॥५८॥ ____ॐ ह्रीं अर्हच्छरणाय नम. अध्यं । __ पद्धडी छन्द। स्वाभाविक गुरण अरहंत गाय, जासों पूरण शिवसुख लहाय । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमैं 'संत' आनंद पाय।५६॥ ॐ ह्री अर्हद्गुणशरणाय नमः अय।। विन केवलज्ञान न मुक्ति होय, पायो है श्री अरहन्त जोय । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनंद पाय ।६०॥ ॐ ह्री अर्हन ज्ञानशरणाय नम अध्यं ।। प्रत्यक्ष देख सर्वज्ञ देव, भाख्यो है शिव मारग असेव । । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' आनंद पाय ।६१। ॐ ह्री अर्हद्दर्शनशरणाय नमः अध्यं । संसार विषम बन्धन उछेद, अरहन्त वीर्य पायो अखेद । हम शरण गही मन वचन काय, नित नमै 'संत' प्रानन्द पाय ।६२। ॐ ह्री अहंदीयशरणाय नम. अध्यं । . षष्ठम् पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy