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सिद्ध०६
वि● १६५
क्षायक दरशन है अरहन्ता, और लोकमे नाहीं ।
सो अरहन्त भये शिववासी, लोकोत्तम सुखदाई ॥४३॥ ॐ ह्री अल्लोकोत्तमदर्शनाय नमः मध्ये । कर्मबली ने सब जग बांध्यो, ताहि हनो अरहन्ता ।
यह अरहन्त वीर्य लोकोत्तम, पायो सिद्ध अनंता ॥४४॥ ॐ ह्री लोकोत्तमवीर्याय नमः अर्घ्यं । अक्षप्रतीत ज्ञान लोकोत्तम, परमातम पद मूला । यह अरहन्त नमूं शिबनाइक, पाऊँ भवदधि कूला ॥४५॥ ॐ ह्री अल्लोकोत्तमाभिनिबोधकाय नमः ग्रयं । परमावधि ज्ञान सुखखानी, केवलज्ञान प्रकाशी ।
यह अवधि अरहन्त नमूं मै, संशय तुमको नाशी ॥४६॥ ॐ ह्री अहल्लोकोत्तमप्रवधिज्ञानाय नमः अयं । जो अरहन्त धरै मनपर्यय, सो केवल के मांहीं । साक्षात् शिवरूप नमो मैं, अन्य लोकमे नाहीं ॥४७॥ ॐ ह्री अल्लोकोत्तमन पर्ययज्ञानाय नमः अर्घ्यं ।
मतमो
पूजा
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