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सिद्ध
वि.
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मोहमलिनता जग जिय नाश, केवलता गुण पावै । सर्व शुद्धता पाइ नमत हैं, हम अरहंत कहावै ॥१८॥
ॐ ह्री अर्हत्केवलगुणाय नम अयं ।। मोह जनित सो रूप विरूपी, तिस विन केवलरूपा। श्री अरहन्त रूप सर्वोत्तम, बन्दू हो शिवभूपा ॥१६॥
ॐ ह्री अहंदकेवलस्वरूपाय नम अy तास विरोधी कर्म जीति करि, केवल दरशन पायो । इस गुरण सहित नमत तुम पद प्रति, भावसहित शिरनायो।२०॥
ॐ ह्री अर्हत्केवलदर्शनाय नम अयं ।। निर आवरण करण विन जाको, शरण हरण नहीं कोई। केवल ज्ञान पाय शिव पायो, पूजत है हम सोई ॥२१॥
ॐ ह्री अर्हत्केवलज्ञानाय नम अयं । अगम अतीर भवोदधि उतरे, सहज ही गोखुर मानो। केवल बल परहन्त नमें हम, शिव थल बास करानो ॥२२॥
ॐ ह्री अर्हत्केवलवीर्याय नम अयं ।
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सप्तमी
पूजा
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