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ॐ ह्री प्रहं षट्पचाशदधिकद्विशतदलोपरिस्थितसिद्ध भ्यो नमः अध्यं नि० । तीन लोक चूडामणी, सदा रहो जयवन्त ।। विघन हरण मंगल करण, तुम्हें नमैं नित 'संत' ॥१२॥
___ इत्याशीर्वाद । इति षष्ठी पूजा सम्पूर्ण। यहाँ "ॐ ह्री असिमाउसा नम" का १०८ बार जाप करे ]
अथ सप्तमी पूजा प्रारम्भ । १ छप्पय छद-ऊरध अधो सुरेफ बिंदु हंकार विराजे,
अकारादि स्वर लिप्त कणिका अन्त सु छाजे। वर्गन पूरित वसुदल अम्बुज तत्त्व संधि धर,
अग्रभागमे मन्त्र अनाहत सोहत प्रतिवर । पुनि अंत ही बेढयो परम, सुर ध्यावत अरि नागको।
हवै कहरि सम पूजन निमित्त, सिद्धचक्र मंगल करो ॥१॥ ॐहीणमो सिद्धाण श्रीसिद्धपरमेष्ठिन् । द्वादशाधिकपचशत ५१२ गुणसयुक्त विराजमान अत्रावतरावतर सवौषट् (आह्वानन) अत्र तिष्ठ तिष्ठ 8.8: (स्थापन) अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् (सन्निधिकरण).
सप्तमी
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पूजा 5१५१
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