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दर्श-ज्ञानमय धर्म, चेतन धर्म प्रगट कहो। भेदाभेद सुपर्म, नमत सदा भव भय हर॥२४८॥
ॐ ह्री चिद्रूपधर्माय नम अय॑ । दर्शज्ञान गुणसार, जीवभूत परमातमा । राजत सब परकार, नमत सदा भव भय हर॥२४६॥
ॐ ह्री चिद्रूपगुणाय नम अर्घ्य । अष्ट कर्म मल जार, दीप्तरूप निज पद लहो। स्वच्छ हेम उनहार, नमत सदा भव भय हरू ॥२५०॥
ॐ ह्री परमस्नातकाय नमः अध्यं । . रागादिक मल सोध, दोऊ विविध विधान विन । लहो शुद्ध प्रतिबोध, नमत सदा भव भय हर॥२५१॥.
ॐ ह्री स्नातकधर्माय नम अयं । विधि आवरण विनाश, दर्श ज्ञान परिपूर्ण हो। लोकालोक प्रकाश, नमत सदा भव भय हर॥२५२॥
ॐ ह्री सर्वावलोकाय नमः अयं ।
षष्ठम्
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