________________
'ॐ ह्रा ह्री ह. ह्रौ ह्र असिग्राउसा सर्वशान्ति कुरु कुरु स्वाहा' अथवा 'ॐ ह्री ६ अर्ह असिआउसा नम'।
फिर निम्न प्रकार श्लोक बोलकर नित्यनियम पूजा, वेदी मे विराजमान भगवान की पूजा, पचमेरु नदीश्वर आदि पूजाये करके सिद्धचक्रयत्र पूजा प्रारभ करे। ८ दिन तक पूजा । सिद्ध करके नवे दिन होम करे। वि० श्रीमन्मदरमस्तके शुचिजलै|ते सदर्भाक्षते, पीठे मुक्तिवर निधाय रचित त्वत्पादपुष्पस्रज । १७६ इंद्रोहं निजभूषणार्थममलं यज्ञोपवीत दधे, मुद्रा-कंकण-शेखराण्यपि तथा जैनाभिषेकोत्सवे ॥
यन्त्र-पूजा 1. परमेष्ठिन् जगत्त्राण-करणे मङ्गलोत्तम । शरण्येतस्तिष्ठतु मे सन्निहितोऽस्तु पावन ।' ३ ॐह्री अर्हन् असिआउसा मगलोत्तमशरणभूता अत्रावतरतावरतरत सवौपट आह्वाननम् ।
ह्री अर्हन् असिआउसा मगलोत्तमशरणभूता अत्र तिष्ठत तिप्ठत ठ ठ स्थापनम् ।। ॐह्री अर्हन् असिआउसा मगलोत्तमशरणभूता अत्र मम सन्निहिता भवत २ वपट् सन्निधापनम पकेरुहायात-पराग-पूजै सौगन्ध्यमदभि सलिलै. पवित्र ।
अर्हत्पदाभापित-मगलादीन प्रत्यूह-नाशार्थमह बजामि ।। ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिभ्य जल निर्वपामीति स्वाहा । काश्मीर-कर्पूर-कृत-द्रवेण, ससार-तापापहृतौ युतेन ।
अर्हत्पदाभापित-मगलादीन प्रत्यूह-नाशार्थमह यजामि ।। ॐ ह्री मगलोत्तम-शरणभूतेभ्य पचपरमेष्ठिभ्य चदन निर्वपामीति स्वाहा ।
Ammunon