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ॐ इन्द्र आगच्छ इन्द्राय स्वाहा, ॐ अग्ने आगच्छ अग्नेय म्वाहा, ॐ यम । आगच्छ । स यमाय स्वाहा, ॐ नैऋत्य । आगच्छ नैऋत्याय स्वाहा, ॐ वरुण | आगच्छ वरुणाय स्वाहा, वि० ॐ पवन आगच्छ पवनाय स्वाहा, ॐ धनद आगच्छ धनदाय स्वाहा, ॐ ईशान | आगच्छ, १६ ईशानाय स्वाहा, ॐधरणेन्द्र | आगच्छ धरणेन्द्राय स्वाहा, ॐसोम आगच्छ सोमाय स्वाहा ।
तत्पश्चात् जिनेन्द्र भगवान की मूर्ति लाकर पूजा स्थान पर रकाबी या जलोठ मे विराजमान करे और प्राशुक जल से निम्न श्लोक बोलकर हवन करे। तत्पश्चात् वेदी मे ! विराजमान करे। दूरावनम्र-सुरनाथ-किरीट-कोटी-संलग्न-रत्न-किरण-च्छवि-धूसराघ्रिम् ।
प्रस्वेद-ताप-मलमुक्तमपि प्रकृष्टैर्भक्त्या जलैजिनपति बहुधार्भािषचे ॥
ॐ ह्री श्रीमत भगवन्त कृपालुसन्त वृषभादिमहावीरपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकर-परमदेवाभिषेकसमये अद्याना आद्य जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्र आर्यखण्डे • देशे • • • नाम्नि नगरे श्रीशुभसम्वत्सरे" मासानामुत्तमे मासे .. पक्षे । “ पर्वणि" शुभदिने मुनिआर्यिकाश्रावकश्राविकाणा सकलकर्म-क्षयार्थ जलेनाभिषिचे नम (भगवानके शिरपरजलधारा) अष्टम
इसके बाद सिद्धयन्त्र प्रक्षाल निम्न मत्र पढते हुए करना चाहिए।
ॐ भूर्भुव स्वरिह एतद्विघ्नौघवारक यन्त्रमह परिषिंचयामि । इस प्रकार हवन करके यन्त्र को मडल मे सिंहासन पर विराजमान करदे । तत्पश्चात् जपस्थान मे बैठकर जो जाप्य जपना हो उसकी एक माला फेरे । जाप्य मत्र निम्न दो मे से कोई एक हो।