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___ॐ ह्री प्रत्येकर्मरहिताय नम अयं । सिद्धः इक देह विष बहु जीव रहै, इक साथ सभी तिस भोग लहै। वि० यह भेद निगोद सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तसु मूल हनो॥१३२॥
ॐ ह्री साधारणनामकर्मरहिताय नम अध्यं ।
उपेन्द्रबज्रा छन्द । चले न जो धातु तजै न वासा, यथाविधि आप धरै निवासा । यही प्रकारा थिर नाम भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥१३३॥
___ॐ ह्री स्थिरनामकर्मरहिनाय नम. अध्यं । अनेक थानं मुख गोण धातं, चलंति धारं निजवास धातं । यही प्रकारा थिर नाम भासो, नमामि देवं तिस देह नासो॥१३४॥
ॐ ह्री अस्थिरनामकर्मरहिताय नम अध्यं । यथाविधी देह विशाल सोहै, मुखारविंदादिक सर्व मोहै।
षष्ठम यही प्रकारा शुभ नाम भासो, नमामि देवं तिस देह नासो ॥१३॥
ॐ ह्री शुभनामकर्मरहिताय नम अध्यं । असुन्दराकार शरीर मांहीं, लखो जहाँसो विडरूप ताहीं।
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