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ॐ ही प्रहारकसघातरहिताय नमः अयं ।
वैक्रिय के जोड़ जो होत नाहीं, संघातनामा जिन बैन माहीं ।
सिद्ध०
वि० संघात नामा जिय देह जानो, पूजूं तुम्हे सिद्ध यह कर्म भानो ॥७१॥ ॐ ह्रीं वैयिकसघातरहिताय नमः अध्यं । तेजस्सके अंग उपंग सारे, संधी मिलाया तिस मांहि धारे ।
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संघात नामा जिय देह जानो, पूजूं तुम्हे सिद्ध यह कर्म भानो ॥७२॥ ॐ ह्री तेजसमघातरहिताय नमः अयं । ज्ञानादि वर्ण वो कर्म काया, ताको मिलाया श्रुत मांहि गाया । संघात नामा जिय देह जानो, पूजूं तुम्हे सिद्ध यह कर्म भानो ॥७३॥ ॐ ह्री कार्मारणसघातरहिताय नमः श्रयं
चौबोलाछन्द- पुद्गलीक वर्गरगा जोग है जब जिय करत अहारा । प्रणवावे तिनको एकत्र करि, बंध उदय अनुसारा ॥ यही श्रदारिक बन्धन तुमने, छेद किये निरधारा । भए अबंध का अनूपम, जजू भक्ति उर धारा ॥७४॥ ॐ ह्री प्रौदारिकनबन्धनरहिताय नम अध्यं ।
षष्ठम पूजा
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