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सिद्ध
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ध्यान योग निज ध्येय पद, भावित नमूअशेष ॥१०६॥
ह्री नानुमोदितमानकामसरम्भ-ध्येयभावाय नमः अध्यं । मदयुत तनसों रंच भी, समारंभ विधि नाहिं । परमाराधन योगपद, पायो प्रणम् ताहि ॥१०७॥
ॐ ह्री प्रकृतमानकाय-समारम्भ-परमाराधनाय नमः अयं । समारम्भ निज कायसों, मदयुत नहीं कराय। ज्ञानानन्द सुभाव युत, प्ररणम शीश नवाय ॥१०८॥
___ॐ ह्रो प्रकारितमानकायसमारम्भानदगुणाय नमः मध्यं । समारम्भ मय विधि सहित, तनसों हर्ष न होय । निजानन्द नन्दित तिन्है, नमसदा मद खोय ॥१०॥ ॐ ह्री नानुमोदितमनकायसमारम्भस्वानदनन्दिताय नमः अध्यं ।।
अद्धं चौपई। अकृत मानारंभ शरीर, पर अनिंद्य बन्दू धर धीर ॥११०॥
ॐ ह्री अकृतमानकायारम्भसतोपाय नमःमध्यं । कायारंभ अकारित मान, स्व सरूप-रत बन्दूतान ॥१११॥
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पूजा
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