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___ॐ ह्री प्रकृतवचनमानमरम्भ-प्रविनश्वरधर्माय नमः अध्यं ॥६॥ सिद्धमान प्रकृति करि उदै करावै ना कदा, वचनन करि संरंभ भेद वरण्यदाई वि०मन इन्द्रिय अव्यक्तस्वरूप अनुप हो, नम सिद्धगुणसागर स्वातम रूपहोई ७३ ३ ॐ ह्री प्रकारित वचनमानसरम्भ अव्यक्तस्वरूपाय नम अध्यं ।।६।। । सोरठा--नानुमोद वच योग, मान सहित संरम्भ मय ।
दुर्लभ इन्द्री भोग, परम सिद्ध प्ररणम् सदा ॥७०॥ ॐ ह्री नानुमोदितवचनमानसरम्भदुर्लभाय नमः अध्यं ।
चौपई। समारम्भ जिन वैन न द्वार, करत नहीं है मान संभार । ज्ञान सहित चिन्मूरति सार, परम गम्य है निर आकार ॥७१॥
ॐ ह्री अकृतवचनमानसमारभपरमगम्यनिराकाराय नमः मध्य । वचन प्रवृत्ति मानयुत ठान, समारम्भ विधि नाहिं करान । शुद्ध स्वभाव परम सुखकार, नम सिद्ध उर प्रानन्द धार ॥७२॥
ॐ ह्री अकारितवचनमानसमारभपरमस्वभावाय नमः अध्यं । वचन प्रवृत्ति मानयुत होय, समारम्भ मय हर्षित सोय ।