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सिद्ध
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ॐ ह्री प्रकारितमनो-लोभसमारभ-अनाकाराय नमः अध्यं । ऐसे ही पूर्वोक्त विधि, हर्षित होवे नाहि । चित्सरूप साकारपद, धारत हूँ उरमाहिं ॥५॥ ___ॐ ह्री नानुमोदितमनो लोभसमारम्भसाकाराय नम. अयं । रचना हिंसा काजकी, लोभी मनके द्वार।। नहीं करै है ते नमू, चिदानंद पद सार ॥५६॥
ॐ ह्री अकृतमनोलोभारभचिदानन्दाय नमः अध्यं । लोभी मन प्रेरित नहीं, परको प्रारंभ हेत। चिन्मय रूपी पद धरै, नम लहूँ निज खेत ॥५७॥ ___ ह्री अकारितमनोलोभारम्भचिन्मयस्वरूपाय नमः अध्यं । मन लोभी आरंभमें, प्रानन्द लहे न लेश । निजपदमें नित रमत है, ध्याऊं भक्ति विशेष ॥५॥ ॐ ह्री नानुमोदितमनोलोभारंभस्वरूपाय नमः अयं ।
अडिल्ल छन्द । क्रोधित जिय वचयोग द्वार उपयोगको,रचनाविधिसंकल्पनाम समरंभ सौ
पचम
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