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विषया
श्रीउपदेशपदे
॥४०७॥
* संती ॥ २६९ ॥ आलोइयसुयवयणो खणमेगं निबुई लहेऊण । वाहरइ वच्छ ! पेच्छसु जणणी जं ऊसुआ सुबहुं ॥२७०॥
संजोइयकरकमलो भणाइ जं आणावेइ मं ताओ । तप्पायपणामपुरस्सरेण संपढिओ विहिणा ॥ २७१ ॥ बहुदिणविर- भ्यासे शुहेण तणूकयदेहं खामपंडुरकरोलं । जम्मंतरपत्तं पिव पासइ जणणिं पढमयाए ॥ २७२ ॥ तो निययदंसणाओ धाराहय- कोदाहरनीवकुसुममालं व । तक्खणमेव विहसियं अंगम्मि णिए अमायंती ॥ २७३ ॥ पणमइ वहूसमेओ सावि य आसीसमेरिसं
णम्देइ । जह पुत्त! पचयाऊ भव तं बहुयावि अट्ठसुया ॥ २७४ ॥ परिवारनिवेइयसबवइयरो अच्छिउँ खणं एकं । जणगनिरूवियपासायमागओ सो सुहं वसइ ॥ २७५ ॥ लद्धं च तेण रज कमेण सवा मही वसीहूया । पलयानलतुल्लपयावपहयपरपक्खरुक्खेण ॥ २७६ ॥ विज्जाहरोवणीएहिं फुल्लगंधाइएहिं पइदिवसं । पच्चग्गेहिं पयट्टइ भोगो सिरिचंदकंताए ॥ २७७ ॥ एवं वच्चइ कालो अइनिबिडसिणेहनिगडगढियाण । सुमिणम्मि सुहपसुत्ता अहन्नया सा नियच्छेइ ॥ २७८॥ कप्पडुमं मणोरमफलकुसुमसमूहनमिरसोहग्गं । गेहंगणे समुट्ठियमइनिद्धदलं सुहच्छायं ॥ २७९॥ कहियं पइणो सर्व सुमिणसरूवं पलावियं तेण । नियकुलकप्पडुमसन्निहस्स पुत्तस्स लाभेण ॥ २८० ॥ साहिगनवमासंते जाओ पुत्तो पइट्ठियं नाम । कुलकप्पतरुत्ति कमा पत्तो तारुण्णयं एसो ॥ २८१॥ कइयाइ पडिच्चारगपमायदोसाओ अहिणवाई लहुँ। भोगंगाई न पत्ताई फुल्लफलगंधमाईणि ॥ २८२॥ परिवासिएहिं विहिओ सिंगारो तीए चंदकंताए । सो अच्चतमणोरमरूवो जाओ न जं तेण ॥ २८३ ॥ विहिओ सहीजणेणं उवहासो वल्लहा न तं पिउणो । जं एवं परिहाणी भोगंगाणं कया है॥४०७॥ तुज्झ ॥ २८४ ॥ जायं च तक्खणाओ वेरग्गं ही पियावि कह मज्झ । जाओ सिणेहसुन्नो मन्ने अन्नपि इय होही ॥२८५॥
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