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श्री उपदेशपदे
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णसंवरणं। तेसिं पाणिग्गहणं वत्तं कुल किञ्चनिवहणं ॥ १५१ ॥ जयसेणकुमारेणवि हयगयधणकणयभूसणाईयं । दिन्नं कलावईए अइरित्तं जणयभणियाओ ॥ १५२ ॥ अह संखमहाराया तिहुयणविजयंव पाविओ सहसा । लाभे कलावईए अयं मबुई पत्तो ॥ १५३ ॥ जयसेणस्सवि हियए पीई एयम्मि भइणिणेहेण । पडिवत्तिगोरवेहिय जाया अहिया गुणनिमि ॥ १५४ ॥ परिहासतोसपंडियकहाहिं सुहमच्छिऊण बहुदियहे । पीहिययदुक्खभीरू तहावि गमणूसुओ जाओ ॥ १५५ ॥ भणिओ य तेण राया तुह पाया देव! दुच्चया अम्हं । तहवि पियरो महंतं काहिंति मणे असंतोसं ॥१५६॥ सट्ठाणमओ जामो अणुजाणह राइणा तओ भणियं । पियदंसणधणजसजीवियाण को लहइ पजत्तिं ? ॥१५७॥ ता कुमर किं भणिज्जं तहावि जह संगमो पुणो होइ । सिग्धं चिय तह जत्तो कज्जो पीऊसवुद्धिसमो ॥ १५८ ॥ सुविवि मा कुणेजसु देवीए कलावईए विसयम्मि । चिंतं, जओ न रयणं कस्सवि चिंताए अग्धेइ ॥ १५९ ॥ जयसेणकुमारेण वि भणियं सच्चं ण अन्नहा एयं । जं पुण इह भणियवं ताए पुरावि भणियं तं ॥ १६० ॥ नासगभूया तुम्हाणमप्पिया सबहावि तुमेहिं । एसा चिंतेयबा वसणे तह ऊसवे य सया ॥ १६१ ॥ इय संभासपरो सो विरहग्गिकरालियंव रुयमाणिं । संठावि कलावमगमंतो नरिंदेण ॥ १६२ ॥ कुमरो गंतुं लग्गो कमेण पत्तो य देवसालम्मि । दिट्ठा पियरो हिट्टेण साहिओ वइयरो सबो ॥ १६३ ॥ संखोवि य खोणिवई संपुन्नमणोरहो सह पियाए । तीए अपत्तविरहो भोए भोत्तुं समारद्धो ॥ १६४ ॥ तीए अदंसणे हिययनिबुई न हु खर्णपि पावेइ । नियजीवियंपि दिच्छइ अच्छइ सइ तक्कहक्खणिओ ॥ १६५ ॥ किं बहुणा । कज्जाई कुणइ अंगं चित्तं चिट्ठइ कलावई जत्थ । अंतेउरंपि सबं कलावईणामगं जायं ॥ १६६ ॥
शङ्खकलावतीनिदर्शनम् -
॥ ३४६ ॥