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________________ 63-640 ओहरो तेणो । जेण सहिचिसवित्तं हरियं सपासिं पञ्चक्खं ॥ १०॥ ता उवणिजउ मुद्धे ! एस महारायगोयरं तुरियं । ॐाजेणम्ह मामिणीए अप्पइ सयलं हिययरित्धं ॥११॥ अन्ना भणइ.सयं चिय गहिओ एसो हलाणराएण । नजइजीवि यकजे महइ अहो ! सामिणिं सरणं ॥१२॥ नाया हंत विलक्खा अह पभणइ रिद्धिसुंदरी ताओ। संचलह हला! हुलियं अलं असंबद्भवाएण ॥ १३॥ एत्थंतरम्मि सहसा छीयं धम्मेण णियणिमित्ताओ । भणियं च तयवसाणे नमो नमो जिणवरिंदाणं ॥ १४ ॥ तं सुणिय समुल्लसियं अहिययरं रिद्धिसुंदरीएवि । भणियं च चिरं जीवउ जिणिंदभत्तो जणो 8 सीएस ॥ १५ ॥ आयण्णिय नीसेसं वित्तंतमिणं सुमित्तवित्तेसो । पुच्छइ धम्मसरूवं तयभिन्ने भवजीवोष ॥ १६ ॥ घेत्तूण है। परियणाओ चेइयजइपूयणेक्करसियं तं । तस्स सयमेव गंतुं वियरइ धूयं सुहमुहुत्ते ॥ १७ ॥ मग्गंताणवि कुलरूवविहव3 कोसाठकित्तिकलियाणं । जिणमयवज्झाण वहूण जान दिन्ना पुरा पिउणा ॥ १८॥ संपइ अमग्गिया सा लद्धा धम्मेण 8 जिणमयरएण । अह्वा अमग्गियं चिय लहंति सोक्खं जिणमयत्था ॥ १९ ॥ वारिजयम्मि वित्ते संपुन्नमणोरहो सह । पियाए । कयकाययो धम्मो संपत्तो तामलित्तीए ॥२०॥ जायं च तहा तेसिं पेमं निवडियहियययसभावं । न सहति विपओगं जह दोवि निमेसमेत्तं पि॥२१॥ अह अन्नया सभज्जो पाएण महग्घभंडभरिएण । धम्मो धणज्जणत्थं संपत्तो सिंहलद्दीवं ॥ २२ ॥ तत्तो विद्वत्तवित्तो पमुइयचित्तो लहुं पडिनियत्तो । पत्तो अंतो रयणायरस्स भवभीमरुवस्स ॥२३॥ भवियघयानिओया अतक्कियं चेव दुदिणं जायं । उल्लालियकल्लोलो उच्छलिओ कालियावाओ ॥ २४ ॥ दद्द्ण पलयमारु| यपयंव महोदहिं महाभीमं । उल्लम्बिया खणद्धेण णंगरा पोयभियगेहिं ॥ २५ ॥ संकोइओ सियवडो पारद्धा देवयाण
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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