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श्रीउपदेशपदे
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॥ १४४ ॥ हा ! कह महा सईए कओ अणत्थो मए अणजेण । इय सोयनीसहंगो जाओ य विमुक्कवावारो ॥ १४५ ॥ अह रइसुंदरिदेवी सासणदेविं मणम्मि काऊण । काउस्सग्गम्मि ठिया झायंती जिणनमोक्कारं ॥ १४६ ॥ आकंपिया य सहसा तयंतियं देवया समायाया । कुणइ णयणाइं तीसे सविसेसविलाससोहाई ॥ १४७ ॥ तदंसणसीयलवारिवारियासेससोयसंतावो । जाओ थिरयरचित्तो पडिवन्नवए नरवरिंदो ॥ १४८ ॥ मरिसाविऊण बहुहा पच्चय महंतएहिं परियरियं । कयबहुविहप्पसायं पेसइ तं नंदणं नयरं ॥ १४९ ॥ संदिट्ठे चंदस्सवि जह एसा मज्झ सोयरी भगिणी । धम्मगुरू परमप्पा महासई देवकयरक्खा ॥ १५० ॥ ता एयाए उवरि असुहासंका न काइ कायद्या । खमियबो अवराहो ममावि पाविट्ठलइस्स ॥ १५१ ॥ धन्नो तं जस्स घरे तिहुयणलच्छिव पंकयदलच्छी । अच्छइ निच्छियसारा एसा सुररक्खिया सक्खा ॥ १५२ ॥ दहूण तं किसंगिं सोऊण महिंदसीहसंदि । वृत्तंतं च पवित्तं चंदनरिंदो दढं तुट्ठो ॥ १५३ ॥ तीए सद्धिं सद्धम्मविद्धिसारं मणोरम्मं रज्जं । परिवालिउमारद्धो फुरंत जसकित्तिसंताणो ॥ १५४ ॥ एवं अकरणनियमो सम्म आराहिओ निवसुयाए । वयणं पवत्तिणीए निरंतरं संभरंतीए ॥ १५५ ॥ छ ॥
अह बुद्धिसुंदरीवि य दिण्णा पिउणा सुसीमनयरम्मि । कयपत्थणस्स बहुसो सुकित्तिणो रायमंतिस्स ॥ १ ॥ उत्तमकलाकलावं पुण्णं ताराहिवंच तं लहिउं । छणजामिणिव सुहया सुसोहिया सा जए जाया ॥ २ ॥ अण्णदिणे नरवइणा नहरमाणेण रायवाडीए । दिट्ठा पासायतले फुरंतकंती सुरबहुध ॥ ३ ॥ लायन्नमणन्नसमं तीए दडूण माणसं तस्स । खुत्तं सिलाजमिव संचरिडं तरइ नन्नत्थ ॥ ४ ॥ कामग्गितत्ततणुणा उवायमन्नं अपेच्छमाणेण । तेणण्णदिणे दूई निय
रति - बुद्धि
सुन्दरीचरिते
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