________________
1-96
श्रीउपदे- शपदे
नागश्रियाउत्तरजन्म(द्रौपदीचरितम्)
॥३०६॥
नायं जह दुवयसुयाए भाउगो कण्हो । रणकम्मसतिण्हो जस्स नत्थि भुवणेवि कोवि समो॥२६८॥ इय सो हरिणा भणिओ घेत्तुं सप्पणयमाणमह चलिओ । तं अमरकंकनयरिं पइ पत्तो रायभवणम्मि ॥ २६९ ॥ दूयजणोचियविणए विहिए भणियं जहेस मह विणओ । मम सामिणो पुण इमो पाएण तदासणं हणइ ॥ २७०॥ कुंतग्गेण पणामइ लेहं तो पउमनाहनरवइणा । दंडिकिओ समाणो तमवद्दारेण नीणेइ ॥ २७१॥ भणइ य पञ्चप्पिणणस्स हेउमेसा मए न आणीया। ता जइ रणेण कज्जं सज्जो एज्जामि कहसु तुमं ॥२७२ ॥ परभूमिमागओ सो अहं सभूमीए संठिओ बलवं। एसो अप्पपरियरो अहमेत्य पभूयपरिवारो ॥ २७३ ॥ इय चिंतिय चउरंगाए संगओ रणसहाए सेणाए । गयखंधगओ नयराओ रोसरत्तो स नीसरइ ॥ २७४ ॥ हरिणाओ ते पंचवि पंडुसुया भासिया किमिह कज्जं । ते भासंति जहजं अम्हे व इमे व नो होज्जा ॥ २७५॥णाणाविहेहिं आउहसएहिं संपन्नविहियरहगम्भा । आओहणं पवन्ना सन्ना य खणेण संजाया ॥ २७६ ॥ बहुपउमनाहसेणामुच्चंतविचित्तसत्थनिवहेण । छिन्नझयसत्तमउडा सरछिद्दतणू पराहुत्ता ॥ २७७॥ विहिया हरिपासगया भणंति अबो ! महाबलो एस । वजरइ हरी तुम्भे जइ निच्छियभासगा होउं ॥२७८ ॥ अज्ज वयं न उपउमो होमो इय जुद्धमणुसरंता तो। दुजयविजियविपक्खा सियकित्तिपयं परं हुंता ॥२७९॥ पेच्छह अज्ज न पउमो अहमेव भवामि भासिउं एवं । वयणपवणेण पूरइ पंचजण्णं महासंखं ॥ २८०॥ तो तस्स रवेण हओ सुत्तो मत्तोब तक्खणा जाओ। तस्स वलस्स तिभागो तत्तो धणुदंडमामुसइ ॥२८१॥ तस्स पणुचाटंकार सद्दवहिरीकओ दुइजोवि। भागो जाव असत्थोदिट्ठो पउमो तओ नहो ॥ २८२॥ तियनयरीए पविट्ठो दारपिहाणं च निद्वरं विहियं । विहिया रोह
S
CHOGESCHOOG!