________________
श्रीउपदेशपदे
॥ ३०५ ॥
पुरस्सरमुत्तं जो दोवई लहइ देविं । तस्स पसायं सुमहंतमहमकाले करिस्सामि ॥ २३६ ॥ जाव कहिंवि न लद्धा पुरेसु गामेसु वा तओ कुंती । भणिया कण्हसमीवे वारवईए तुमं गच्छ ॥ २३७ ॥ कण्हस्स एयमहं साहेसु निवेण पंडुणा भणिया । यखंधगया चलिया कण्हाभिमुहं लहुं एसा ॥ २३८ ॥ वारवईए पुरीए पत्ता बहुगउरवेण पडिवन्ना । कण्हे पुच्छिया भणसु किमिहमागमणकज्जंति ॥ २३९ ॥ पुत्त ! निसाए जुहिट्ठिरपासे सेज्जायले सुहपमुत्ता । केणावि दोवई अवहरित नीया कहंचित्ति ॥ २४० ॥ ता जह तीए पउत्ती लब्भइ तह ज्झत्ति कुणसु तं जुत्तं । तत्तो को अन्नो एरिसम्मि कज्जे सहो अत्थि ॥ २४१ ॥ इय भणिए कुंतीए तक्खणसंजायपोरिसुक्करिसो । पायालाओ सुरलोगओ व सलिलालयाओ वा ॥ २४२ ॥ जह उवलभामि तह मे जइयां मेवमग्गओ तीसे । कुणइ पइण्णं अम्मो ! चिट्ठह वीसत्थया तुव्भे ॥ २४३ ॥ सकारयित्तु सम्माणयित्तु तं गयउरे विसज्जेइ । गहिया गवेसणा सबओवि नो जाव उवलभइ ॥ २४४ ॥ तो नारओ कयावि हु समागओ वासुदेवभवणम्मि । अग्घप्पयाणपुत्रं तेणवि बहुगउरवपरेण ॥ २४५ ॥ पुट्ठो सुहासणत्थो हरिणा नियगेहकुसलपसिणपरो । दिट्ठा सुया व कत्थइ भयवं ! तुमए रइहराओ ॥ २४६ ॥ अवहरिऊणं नीया देवी दुवयंगया सुहपसुत्ता। राओ समं जुहिट्ठिररण्णा केणवि अणजंती ॥ २४७ ॥ ता ईसिहसिरवयणेण तेण भणियं न एरिसेसु ममं । अहिगारो अत्थि परं तुहोवरोहा भणामि जहा ॥ २४८ ॥ सा अन्ना वा किमु होज एत्थ मे निच्छओ न कोइत्ति । परममरकंकनयरीए पउमनाहस्स भवणम्मि ॥ २४९ ॥ दिट्ठा तीए सरिच्छा एगा नारी विवन्नमुहवन्ना । भूमीनिहित्तनया पासेवि गयं अपेच्छंती ॥ २५० ॥ भणियं हरिणा ताहे तुमए उट्ठाविओ कली एस । आगासगामिविज्जं सरिडं सो
नागश्रियाउत्तरजन्म
( द्रौपदीचरितम्) -
॥ ३०५ ॥