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श्रीउपदेशपदे ॥ ३०४ ॥
पत्तो । कालमिगचम्मवत्थो वरदंडकमंडलूहत्थो ॥ २०३ ॥ जन्नोवइयगणित्तियजुत्तो नवमुंजमेहलाणुगओ । वीणागंधव - परो सदक्खिणं कलहमिच्छंतो ॥ २०४ ॥ दडु तमेज्जमाणं पंडू ससुओ सकुंतदेवीए । अन्भुडिओ पयक्खिणसारं वंदइ नमंसइ य ॥ २०५ ॥ दिष्णम्मि आसणे उदगविंदुपरिफोसियाए भिसियाए । दव्भतणोवरी पच्चत्थुयाए आसीओ संत ॥ २०६ ॥ अंतेउरपरिवाराओ कोसलवत्तं स पुच्छए जाव । ता दिट्ठा नियपडिवत्तिपरंमुहा दोवई देवी ॥ २०७ ॥ एसो मिच्छद्दिट्ठी असंजओ वा ण कप्पए मज्झ । एयस्स पणामाई काउं इय सा ठिया एवं ॥ २०८ ॥ सो तं तहट्ठियं पासिऊण रोसाउरो विचिंतेइ । पंचण्ह पंडवाणं लाभा दप्पुद्धरा पावा ॥ २०९ ॥ सुवहूण सवत्तीणं मज्झे तह कहवि पक्खिवेया । ईसामहलसल्लेण सल्लिया जह दुहं हियइ ॥ २२० ॥ तत्तो समुप्पइत्ता धाईसंडम्मि भारहेवासे । नयरीए अमरकंकाए पउमनामस्स नरवइणो ॥ २११ ॥ गंतुं पासे तेणं पणामियं गेण्हए तओ अग्घं । अंतोअंतेउरसंठिएण सो पुच्छिओ ते ॥ २१२ ॥ जारिसयं मह एयं किं अन्नस्सावि कस्सई अस्थि । तारिसयं अंतेउरमीसि हसंतो स ओ भणइ ॥ २१३ ॥ जह कुहुरो जम्मओ वि अनिहालिओदहिजलोहो । मन्नइ अन्नं नो किंपि अस्थिरत्तो महं नयरं ॥ २१४ ॥ एवं तुमंपि अंतेराई अन्नाण भूमिनाहाण । अनिहालंतो मन्नसि मज्झतेउरसमं न परं ॥ २१५ ॥ जंबुद्दीवे भारहवासे नयरम्मि हत्थिणागमि । पंडुस्स राइणो पंडवाण पचण्ह जा जाया ॥ २१६ ॥ नामेण दोवईए पायंगुङ्कंपि नो इमं भवइ । तह तियसासुरखेयर नारीओ सुंदराओवि ॥ २१७ ॥ जं दुल्लहं च दूरे य जंच जं जं परेसिमायत्तं । तम्मि जणो रायपरो पाएण न इयरूमि ॥ २९८ ॥ इय से तवयणायण्णणेण जलणोव पवलपवणेण । उच्छालिओ सुतिवो मयणो कयनिव्भरु
नागश्रियाउत्तरजन्म
( द्रौपदीचरितम्) -
॥ ३०४ ॥