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मागरदत्तस्म ममुजुओ तओ गंतुं । दहुं गिहमिज्जंतं तं सो सहसा समुट्ठेइ ॥ ९१ ॥ पुच्छइ सुहासणत्थं आगमणपओयणं न तो भगः । मुकुमालियामिहाणा जा तुह धूया वरेडं तं ॥ ९२ ॥ नियनंदणस्स सागरनामस्स कए समाणरूवस्स । अम्हे समागया इह समलावण्णाइगुणनिहिणो ॥ ९३ ॥ ता जइ जुत्तं पत्तं च भाइ ता किज्जड इमं एवं । पत्थावविहडियाणं कण पुणो गई नत्थि ॥ ९४ ॥ भणिए जिणदत्तेणं सागरदत्तो तओ इमं भणइ । अम्हाण गिहंगणमागयाण हो किमदेयं ॥ ९५ ॥ परमेका मे धूया उंवरपुप्फाउ दुलहा एसा । ण खर्णपि तीए विरहं सहामि मणणयणदइयाए | ॥ ९६ ॥ ता जइ तुह सागरओ मम गिहजामाउओ सुओ होइ । तो धूयं सुकुमालियमहं पइच्छामि नो इहरा ॥ ९७ ॥ गेागरण भणिओ जणगेण स सागरो जहा वच्छ ! । जइ घरजामाया होसि लहसि सुकुमालियं धूयं ॥ ९८ ॥ तीए दढापुराओ मतं तं सवहा पवज्जेइ । तो जिणदत्तो सवायरेण परमूसवं कुणइ ॥ ९९ ॥ सिवियाए पुरिससहसोचियाए आरुहिय सागरी ताहे । सागरदत्तस्स गिहं हरिसुलसिरो समणुपत्तो ॥ १०० ॥ तेणावि गोरवाओं महाविभूईए विहियसकारो। पडिवो वीवाहं च कारिओ दारियाए समं ॥ १०१ ॥ जम्मि समयम्मि तीसे करफासो तस्स ईसि संजाओ । तप्पमिदं सिरसूलं सदाहजरमस्स उन्भूयं ॥ १०२ ॥ जह दारुणेण फणिणा अहवा जह विच्छुएण डकस्स । जह मुम्मुरामिसित्तस्म तह दुक्खं तक्सणं जायं ॥ १०३ ॥ लज्जाविलंघिओ तक्खणम्मि तुहिक्कओ ठिओ कहवि । पत्तम्मि सयणकाले सेज्जातलसंठियस्तेसा ॥ १०४ ॥ पक्खुहियरागजलही सबंगपसाहिया सणियसणियं । पासम्मि नुवन्ना अच्छरव | सग्गाओ ओइण्णा ॥ १०५ ॥ अह पुणरवि तीए अंगफासमुवलडुमागयविसाओ । चिंतेइ को खणो मज्झ होज्ज एईए