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श्रीउपदेशपदे
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सगिहेसु । एवं वोहिजते काले कइयावि धम्मरुई ॥४२॥ सच्चं चिय धम्मरुई अणगारो मासखमणपारणए । पढमाए नागश्रीग8 पोरिसीए सज्झायमझीणमणवित्ती ॥ ४३ ॥ वीयाए ज्झाण जोगं तइयाए काउं पत्तगुग्गाहं । इरियासमिइपरिगओ अंतोर्भितधर्मरु
चंपाए पविसेइ ॥४४॥ तम्मि दिणे णागसिरीए वारओ भोयणस्स णिम्मवणे । कहवि पमाया तीए उवक्खडं तुंवर्ग चिचरिकडुयं ॥४५॥ वहुनेहं तह बहुतित्तमहुररसदवसंजुयं ताहे । संजायं विसरूवं कत्तोवि कुजोगदोसाओ ॥४६॥ गंधाउ त्रम्तीए नायं तओ विलक्खा मणम्मि चिंतेइ । धी घी मम माहप्पं कुडंबमज्झे जमुवलद्धं ॥४७॥ जइ नाम सेसयाओ कहिंचि एवं वियाणइस्संति । तो मम निंदाखिंसाओ उवरमिस्संति न कयाइ ॥४८॥ तो बाढं गोवेत्ता ठवेमि गेहस्स एगदेसम्मि । इय चिंतिय तं ठवियं तह चेव लहुं तओ अन्नं ॥ ४९ ॥ आणित्तु साउरसमायरेण महया सुसंभियं विहियं। ण्हायासुइवत्थाए तीए जेमाविया विप्पा ॥५०॥ पच्छा पुण सयमवि ताओ महाणीओ कमेण भुत्ताओ । सबो जणो स भुत्तो नियकम्मपरायणो जाओ॥५१॥ एत्थंतरम्मि साहू धम्मरुई उच्चनीयमज्झाई । गेहाई परिभमंतो नागसिरीगेहमणुपत्तो ॥५२॥ सा दूरा दहणं गेहे पविसंतमुग्गयपमोया । तत्तुंबगेडणकए ससंभमा आसणाउ लहुं ॥ ५३॥
उद्वित्ता भत्तघरं पविसइ तं कडुयतुंवर्ग लाउं । धम्मरुइसाहुणो सयलमेव निसिरइ पडिग्गहगे ॥५४॥ पजत्तं मह जायं है तिकट्ठ गेहाओ ताओ निक्खमइ । जेणेवुज्जाणं सूरिणो य तेणेव पडिएइ ॥ ५५॥ तेर्सि सूरीणमदूरदेसट्ठियओ पडिक्क
मइ इरियं । वियडेइ भत्तपाणं दंसेइ य करयले काउं॥५६॥ तस्सुग्गगंधपरवसघाणो मुणिणायगो विचिंतेइ । नूणं विसन्नमेयं न अन्नहा एरिसो गंधो ॥ ५७॥ गेण्हित्तु करयले बिंदुमेगमित्तो निभालए जाव । ता तं तहच्चिय जओ धम्म
पविसइ त करा दणं गेहे पत्थतरम्मि सात सयमवि ताण