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श्रीउपदेशपदे
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तकलाकुसला मममेव सुया परं एत्थ ॥ २०॥ सो पुण सुरिंददत्तो कलाकलावं अहिजिओ सयलं । अगणेतो समव-18 राधावेध यसा चेडरूवंपि पचूहं ॥ २१॥ अह महुरानयरीए पचयनगराहिवो निययधूयं । पुच्छइ पुत्ति ! तुह वरो जो रोयइ तं निदर्शनम्। पणामेमि ॥ २२॥ तीए पयंपियं ताय! इंददत्तस्स संतिया पुत्ता । सुवंति कलाकुसला सूरा धीरा सुरूवा य ॥२३॥ तेसिं एक सुपरिक्खिऊण राहाइ वेहविहिणा है। जइ भणसि ता सयं चिय गत्तूण तहिं वरेमि त्ति ॥२४॥ (ग्रं० १०००) -पडिवन्नं नरवइणा ताहे पउराए रायरिद्धीए । सा परिगया पयट्टा गंतुं नयरम्मि इंदपुरे ॥२५॥ तं इंति सोऊणं तुटेणं तेण इंदनरवइणा । कारविया नियनयरी उब्भवियविचित्तधयनिवहा ॥ २६ ॥ अह आगयाइ तीए दवाविओ सोहणो य आवासो । भोयणदाणप्पमुहा विहिया गुरुउचियपडिवत्ती ॥ २७॥ विन्नत्तो तीइ निवो राहं जो विधिही सुओ
तुज्झ । सो च्चिय में परिणेहि एत्तो च्चिय आगया हमिह ॥ २८ ॥ रण्णा भणियं, मा सुयणु! एत्तिएणावि तं किलिस्सि-है। र' हसि । एक्केवपहाणगुणा सबेवि सुया जओ मज्झ ॥ २९ ॥ उचियपएसे य तओ सब्वेयरभमिरचक्कपंतिल्लो। सिरिरइय
पुत्तिगो लहु महं पइट्ठाविओ थंभो ॥ ३० ॥ अक्खाडओ य रइओ बद्धा मंचा कया य उल्लोया । हरिसुल्लसंतगत्तो 8 आसीणो तत्थ नरनाहो ॥ ३१॥ उवविट्ठो नयरिजणो आहूया राइणा निययपुत्ता । वरमालं घेत्तूणं समागया सावि * रायसुया ॥ ३२ ॥ अह सबपुत्तजेट्ठो सिरिमाली राइणा इमं वुत्तो। हे वच्छ! मणोवंछियमवंझमेत्तो कुणसु मज्झ॥३३॥ धवलेसु नियकुलं परममुन्नई नेसु रजमणवजं । जिण्हाहि जयपडागं सत्तणं विप्पियं कुणसु ॥ ३४॥ एवं रायसिरि पिव २९॥
क घ 'निययधूवं'।