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श्रीउपदे- सदक्खमहो॥२३८॥ लोभाभिभूयचित्ता जीवा गुणदोसणाणपरिहीणा । पावंति एरिसाई अहह दरंताई वसणाई श्रीमतीशपदे ॥२३९॥ ता सोमाए पयंपियमेसो लोभो भुयंगमोब मए । गाढं वियंभमाणो विथंभिओ तो समंतेण ॥ २४०॥पत्ति! सोमाहर
तए अडसंदरमायरियं जं पवन्नओ तोसो । एसो तुमए कहमवि न उज्झियवो खणद्धपि ॥ २४१॥ आसवदाराण फलं णप्र०॥२७९॥
पंचण्हमणुकमेण पासित्ता । संजायगरुयसंवेगभावियाई समीवम्मि ॥ २४२ ॥ पत्ताई ताई गणिणीवसहीए वइससं इमं
दिटुं। तत्थवि इमेहिं सहसा जह कोवि नरो निसासमए ॥ २४३ ॥ तिमिरभरनिव्भरे मंडगे उ वाइंगणेहिं भुंजंतो । कह६ मवि मुहंतराले छुढेणं विचुगेण मुहे ॥ २४४ ॥ अदिस्समाणदेहेण विद्धओ कंटगेण तिक्खेण । वंतरजाइत्तणओ तस्स विसं दारुणत्सहावं ॥२४५ ॥ तत्तो उस्सूणमुहो संपत्तो दुक्खमइमहं तो सो। [ग्रंथानं ९०००] णाणाविज्जपरिगओ पउत्तचित्तोसहसहस्सो ॥ २४६ ॥ उन्भीकयवाहुजुओ पीडावेसासगग्गिरगिरो य । अइविरसमारडंतो दिट्टो परिभावियं च तओ ॥ २४७॥ रयणीभोयणफलमस्स भणइ सोमा मए परिच्चाओ। विहिओ इमस्स पुत्ते ! जयम्मि ता तं कयत्था सि ॥ २४८ ॥ पेच्छामो तुह गुरुणिं गणिणिं निस्सेसदोसनिम्महाणिं । तो सविणयं तदंते गयाई पढमं पणमियाई ॥२४२॥
सेज्जायरस्स गिहचेइयाई वसहीए संनिहाणम्मि । अच्चवहाणेण परिट्ठियाई तत्तो सपरिवारा ॥ २५० ॥ गणिणी 6 अच्चुज्जलसीलसालिणीणं बहूण समणीणं । ताराणव ससिमुत्ती मज्झम्मि बहुं विरायंती ॥ २५१॥ दिट्ठा हिट्ठमणेहिं
सप्पणयं वंदिया भणइ सोमा । एसो मम जणगजणो गणिणीयवि उच्चियनीईए ॥ २५२॥ दिवाणि तओ कहिओ भा॥२७९॥ ॐ धम्मो पुच्छाणुसारओ तेसिं । ताओ पुण पुच्छाओ तदुत्तराई च जाणेह ॥ २५३ ॥ (यथा सोमाजनलोकः-)को धम्मो