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जोण्हाओ। गिहकिरियाउ जायाउ झत्ति विच्छायरूवाओ ॥३४॥ चिंतइ भज्जा अबो! किंचि अपुर्व इमस्स माहप्पं । द्रिादालिदस्स यसाओ जस्म जणो परिचिओवि दढं ॥ ३५ ॥ दीसंतोवि गुरुतरो गिरिवरसिहराओ होइ तिणतुल्लो । अनिहा-/ Vालियपुयो इव नरो सिरीमंगसुभगाणं ॥ ३६॥ जाई रूवं विजा तिण्णिवि गहिए महीए विवरम्मि । पविसंति वट्टउ धणं
जेण गुणा पायडा होति ॥ ३७॥ एमाइचित्तचिंतापरवसहिययाए तीए भत्तारो। भणिओ इमस्स नासे दोगच्चविसस्स इह | हिऊ॥ ३८ ॥ अन्नो न कोवि दीसह पइदिवसं झिज्जई यमाहप्पंज भोयणमेत्तंपि हु संपडइ न खीणविहवाणं ॥ ३९॥ |ता गच्छ ससुरकुलमेत्य मग्ग झंटणगमेगमेसो य। सुणहागारो ऊरणगजाइओ चउपयविसेसो ॥ ४०॥ रोमेहिं तस्स
कंबलरयणं कत्तामि मासछकस्स । मन्झम्मि तस्स मुलंदीणाराणं सयसहस्सं ॥४१॥ सो य पुण माणुसाणं सरीरउम्हाए दाजीवइ सयायि । तो तुमए नो खणमवि देहा दूरेण मोत्तबो ॥ ४२ ॥ तह अलिओ बलिओवि य मुक्खजणो संगमे कए तस्स । हसिही सहरिसकरतालदाणपुर्व तहावि तए॥४३॥ न ह उज्झियवओ सो निच्चलनियकज्जसज्जचित्तेण । कि। याण मकण्णो भयाओ इह साडगं मुयइ ।। ४४ ॥ पडिवण्णमिमेण तओ गओ य सिरिसामिनामनयरम्मि । ससुरकु-18 लम्मि अइगो दिट्ठो य सगउरवं तत्थ ॥ ४५ ॥ समयम्मि पुच्छिओ कहसु कारणं किं तुम इहेगागी ? । कहिओ सविकायरो गिहवुत्तंतो ससुरलोगस्स ॥ ४६॥ लद्धो स झंटणपस अक्खयनिहिसन्निहो समत्थतणू । अप्पाहिओ य बहुसो ससु६ रजणेणावि जह लोगो ॥ ४७ ॥ हसिही मुक्खो, न तए विवजणिजो इमो अहागंतुं । लग्गो नियनयराभिमुहमंतराले | तहसिनंतो ॥ ४८ ॥ लोगेण नियपुरवहिं पत्तो मुक्को स तेण आरामे । अइलज्जमुवहंतेण हीणपुन्नत्तणाओ य ॥ ४९ ॥