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श्रीउपदेशपदे
॥२६॥
RERAKAR
संगहियाओ कलाओ सवाओ जायतारुन्नो। संपत्तो स मणुन्नो गुणन्नजणजणियसंतोसो ॥४६॥ वसणं दाणम्मि परं श्रीसुदर्शन पणओ य मुणीसु सुगुरुसु विणओ य । सीलम्मि रई न मई सुविणेवि अकजकरणम्मि॥४७॥ परिणाविओ य पिउणा 8 श्रेष्ठिनिदसुकुलुग्गयमग्गलं गुणगणेण । सयलमहिलाण मज्झे मणोरमं नाम वरकन्नं ॥४८॥ ठाणे २ परिगिजमाणगुणगउरवो र्शनम्गुणिजणेणं । गमयइ दिणाई मइविहवविजियगिवाणवहुमंती ॥४९॥ इओ य दहिवाहणस्स रन्नो पुरोहिओ आसि कविलनामोत्ति । कविला नामेण पिया अहन्नया तीए सो पुरओ ॥५०॥ सेट्ठिसुदंसणचरियं कयवहुमाणो पसंसिउं | लग्गो । जह एत्थ णत्थि संपइ गुणेहिं एयस्स कवि तुल्लो ॥५१॥ "द्वावेतौ पुरुषौ लोके परप्रत्ययकारकौ । स्त्रियः P कामितकामिन्यो लोकः पूजितपूजकः॥५२॥” इय वयणमणुसरंती सा रागपरवसा बहुं जाया । तस्संगमाय मग्गइ
बहू उवाए अह कयाइ ॥ ५३ ॥ पेसविया नियचेडी भणाविया जह पुरोहिओ सरुओ। किंचि असत्थसरीरो इच्छइ तुह है दसणं काउं ॥ ५४॥ तो सो अइसरलमणो सच्चं नियतुल्लचरियमिक्खंतो। अकयण्णमणवियको सच्चं चिय मन्नइ तहाहि P॥ ५५॥ निययाणुमाणकप्पियपरासओ सबहा जणो सबो। णीयाण नाखलो नामहाणुभावो महंताणं ॥५६॥ पत्तो 8 परिमियपरिवारपरगओ सो पुरोहियगिहम्मि । पुच्छइ अपेच्छमाणो पुरोहियं कत्थ सो एत्थ ॥ ५७ ॥ ता उग्घडियम
णोगयभावा कविला पयंपिउं लग्गा । भट्टो गओ निवगिह परोक्खरागं परिवहंती ॥ ५८॥ ज्झीणा दीणाणि बहुयाणि अहमिओ तुहविओयदुक्खमिणं । सक्का सोदं न कहिंवि वंछियं ता कुण ममंति ॥ ५९॥ सूणासालगओ इव छगलो
॥२६ ॥ भयविम्हलो हमो जाओ। धी देवपरिणईए जुत्तो दुग्घडमिमं जायं ॥६०॥ सयलसमीहियसंपायगस्स चिरपालियस्स