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श्रीउपदेश
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जंति दिणा ॥ ७ ॥ अह अन्नया महूसवसमए उज्जाणकीलणनिमित्तं । अयलेण देवदत्ता दिट्ठा सह मूलदेवेण ॥ ८ ॥ सिवियारूढा, पोढं पणयं तक्खणमुवागओ तीए । चिंतेइ सत्थवाहो ता घण्णाणं घडइ एसा ॥ ९ ॥ ता केण उवाएणं मज्झ समीहियकरा भवेज्जेसा ? । आढत्तो दाणाई उवयारोऽणेगहा तीए ॥ १० ॥ उवयारमेत्तगज्झा गणियाओ जेण तेण सोती । आणीओ बहुमाणस्स गोयरं दावियसिणेहो ॥ ११ ॥ वरचित्तभित्तिकलिए निम्मलमणिभूमिए सउल्लोचे । पज्जलियरयणदीवयपहा गलत्थियतिमिरपूरे ॥ १२ ॥ कयब्भडसिंगारो पओससमए य वासभवणे सो । पत्तो पडिवो आसणाइदाणेण सो तीए ॥ १३ ॥ एवं तेण समं सा गमेइ कालं विसालभोगपरा | परमंच्चंतसिणेहा णिच्चं चिय मूलदेवम् ॥ १४ ॥ अक्काभरण एसा न पवेसइ तं नियम्मि गेहम्मि । खिज्जेइ किंचि चित्ते णाओ जणणीइ तन्भावो ॥ १५ ॥ भणिया पुत्ति ! पवेससु जो रुचइ तुज्झ झूरसि किमेवं ? । समए पवेसिओ सो भणिओ अक्काइ तो एवं ॥ १६ ॥ “अपात्रे रमते नारी गिरौ वर्षति माधवः । नीचमाश्रयते लक्ष्मीः प्राज्ञः प्रायेण निर्धनः ॥ १ ॥” पभणेइ देवदत्ता नाहं लुद्धा धणम्मि किंतु गुणे । सो उ गुणो सबो च्चिय निवसइ इह मूलदेवम्मि ॥ १७ ॥ भणिया जणणीए सा अणेगगुणगणसमणिओ अयलो । तत्तो तुह पियाओ सा पभणइ कीरज परिच्छा ॥ १८ ॥ तो अयलस्स समीवे दासी संपेसिया जहा भणसु । तुह वल्लहाइ जायं उच्छूणं भक्खणे चोजं ॥ १९ ॥ तप्पत्थणाइ सोहग्गियाणमग्गेसरं मुणंतो सो । अप्पाणमणेगाई संपेसइ उच्छुसगडाई ॥ २० ॥ भणिया जणणीए सा अचलरसोदारयं तुमं पिच्छ । एक्कवयणेण जेणं
१ घ 'मचत्तसिणेहा' |
| ६ स्वम-नि| दर्शनम् ।
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