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| सपरंपरपत्तं वित्तं कज्जओ नियायत्तं ॥ ३२ ॥ भणियं रश्ना मा वीहसुत्ति को जाणई भविस्सइ किं । एयमणिच्छंतोवि हु तेण पडिच्छाविओ राया ॥ ३३ ॥ नीया सा मंजूसा भंडारगिहम्मि राइणो भणियं । इह देव ! सबसारं संचिट्ठइ पक्खमेगंते ॥ ३४ ॥ संरक्खिज्जउ सघायरेण मज्झोवरोहओ चेव । निविडाई तालगाई दिन्नाई सबओ तीसे ॥ ३५ ॥ तह मीसगमुद्दाओ पइपहरं तह य दुण्णि पाहरिया । एवं कयसुविहाणो सो सचिवो विम्हएण खणं ॥ ३६ ॥ किं एसो विह| डेजा मज्झ पओगो अचिंतचरियं च । दिवं किंच न होज्जा खणं विसाएण छुप्पंतो ॥ ३७ ॥ जा चिट्ठइ तेरसमम्मि वासरे ता पभाय समयम्मि । कण्णंतेउरपरिसंठियाए कण्णाए णरवइणो ॥ ३८ ॥ जाओ वेणीछेओ केण कओ इय निमि - | तचिंताए । जाओ कत्ति पवाओ जह मंतिसुएण जेट्टेण ॥ ३९ ॥ एसा किल नियमंदिरसेज्जापरिसंठिया समागम्म । विश्नत्ता रमसु मए सममुम्मीलियकमलणयणे ! ॥ ४० ॥ भणिया बहुपि णेच्छइ जावेसा ताव रोसवसगेण । वेणी छुरियाहत्थेण कत्ति छिण्णा अणेणत्ति ॥ ४१ ॥ तो अंसुपुण्णणयणा कलुणमुही विस्सरं विरुयमाणा । पिउणो पासम्मि गया णिवेइओ सववुत्तंतो ॥ ४२ ॥ राया उन्भडियपयंडको वदावानलारुणियदेहो । भणइ पुरारक्खगलोगमेरिसं जह स मंतिसुओ ॥ ४३ ॥ सूलारोवणपमुहेण दुक्खमारेण मारिओ होइ । जह सों तहा लहुं चिय करेह अहवा दहह सबे | ॥ ४४ ॥ सवत्तो वेढित्ता तणेहिं छगणेहिं दारुयभरेहिं । सचिवाहमस्स गेहं काऊण जलंतजलणं च ॥ ४५ ॥ जं जाया | उम्मत्ता मज्झ पसायं परं लहित्ताणं । कहमन्नहा इमेरिसमायरणं होज्ज एएसिं ! ॥ ४६ ॥ उब्भडनिलाड भिउडी भंगा | जमभउसमा करालच्छा । तक्खणमेव निउत्ता पुरिसा पत्ता अमच्चगिहे ॥ ४७ ॥| हत्थग्गाहं गिहिउमादत्तं मंतिणो