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श्रीउपदेशपदे ॥ १५७ ॥
वग्गो । परिसुद्धाणसणपरो परासु दिवं समुप्पन्नो ॥ १३ ॥ अणहीयसेससुत्तस्स सूरिणो अह सुहत्थिनामस्स । पत्तो उवझायत्तं महागिरी विणयनयनिहिणो ॥ १४ ॥ अह अन्नया सुहृत्थी मुणिवसहो सिवपयट्टसत्थाहो । कोसंबीऍ पुरीए विहरित्था समणसंघजुओ ॥ १५ ॥ तत्थ पहाणो लोओ नरनाहाई पभूयभत्तीए । पइदिवसं वंदणधम्मसवणपूयणपरो जाओ ॥ १६ ॥ एगो य तत्थ दमगो सो सूरिसमीवमागओ संतो । पुरलोएण सहुग्गयरोमंचे तो मुबइ ॥ १७ ॥ अइतिक्खं दुब्भिक्खं देसे सवत्थ वट्टए तइया । पाएण जणो सयलो अइदुलह भोयणो जाओ ॥ १८ ॥ एत्थ धणवइfit भिक्खट्टा साहुरिसंघाडो । दिट्ठो तेण पविट्ठो दमगेणं कहवि चिरकाला ॥ १९ ॥ तम्मग्गेणऽणुलग्गो ते साहू सिंहकेसराईहिं । पडिलाभियासपणयं निरिक्खमाणस्स तस्स तओ ॥ २० ॥ तग्गिहनिग्गयमित्ता ते तेण पणामपुaj भणिया । एत्तो लद्धाओ भोयणाओ देहेह मे किंचि ॥ २१ ॥ तेहिँ तओ पडिभणियं भद्दपहूसूरिणो परं एत्थ । अम्हमुचियं न दाउँ सूरिसमीवं समं चैव ॥ २२ ॥ गंतूण जाव जायइ मग्गे अम्हेsवि मग्गिया आ । साहिं कहियमत्तो तह भिक्खा लाभवुत्तंतो ॥ २३ ॥ भणइ गुरू न गिहीणं कप्पइ दाउं करेसि पचज्जं । जइ ता गिण्हहि (ण) तन्हा भवाहि पडिवन्नमेयं ति ॥ २४ ॥ एसो किं आराहणमुवलहिहीजा गुरू निरूवेइ । ता निच्छियं पहाणो पवयणपुरिसो इमो होही ॥ २५ ॥ तत्तोऽवत्तगसामइयदिक्खमारोविऊण पज्जत्तं । भुंजाविओ स भत्तं तं चिय जाओ समाहिपरो ॥ २६ ॥ अवो दयावरत्तं मज्झ जमेए पसन्नपरिणामा । पियबंधवस्स वऽङ्कं सबै वति कजम्मि ॥ २७ ॥ एमाइ चित्तचिन्ता सुहारसासिच्चमाणसबंगो । लग्गो नेउं तद्दिणसेसं बहुजायगुरुभत्ती ॥ २८ ॥ पत्तम्मि निसासमए अणुचियभो
| आर्यमहागिरि-आर्यसुहास्ति
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