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तीविय मभावो कहिओ कहमेव एयंति ॥ २५॥ पडिभणियमिमीए रिउसमागमे विहियदेहपक्खाला । कयभसमि कुवेरे कयाभिलासा अहं जाया ॥ २६ ॥ एवं सिटे सिट्टम्मि केइ संभोगमाहु तेणपरं । तबीयाओ न सिद्धो किंतु मही
नाहवीयाओ ॥ २७ ॥ अवमाणो जणणीए उवरि कए सुमइणा स पण्णत्तो। जह देव! चलमणाओ पगईए होंति महिसलामो ॥ २८ ॥ जह पकमन्नमभिलासगोयरो जायए छुहालूण । तह कामुगाण रमणीओ जाण सबाण सवाओ॥२९॥ का अन्नं तं जह सपायरेण रक्खिजमाणमणुवयं । चिट्ठइ तह एयाओवि कोउगाओ निसेझंता ॥ ३०॥ अत एव पठन्ति
-"रहो नास्ति क्षणो नास्ति नास्ति प्रार्थयिता नरः। तेन नारद! नारीणां सतीत्वमुपजायते ॥१॥" तह सत्थेसुवि
सुपद कुंतीए पंडुनंदणा पंच । नेको वि पंडुणा इंदुकित्तिणा तत्थ किल जणिओ ॥ ३१॥ ता सामि! नापसाओ पया15/मणिजो इमीए जं दोसो। नेसो महिलाण भवे मणू मुणी आह इय वयणं ॥ ३२॥ "न स्त्री दुप्यति जारेण न राजा दिराजकर्मणा । नापो मूत्रपुरीषेण न विप्रो वेदकर्मणा ॥१॥" अचंतवियक्खणचिट्ठिओत्ति मंतीणमुवरि सवेसि । पत्तो
मुह पइदं इहपरलोगाविरुद्धंति ॥ ३३ ॥ १५० ॥ मंडलसिद्धी रन्नो समुददेवस्स केणती सिटुं । सुमती णाम दियवरो पन्नोऽतिसएण अंधो य॥१५१॥ तस्साणयणं चारुयपक्खम्मि चडावणं परिक्खत्थं । पक्का पंथे बोरी नरिंदचलणम्मि पडिसेहो ॥१५२॥|| नसुहा एसा विन्नासियम्मि तह चेव कह तए णायं। पंथन्नागहणाओ किमत्थ जाणंति निवतोसो॥१५॥
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अरऊ