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श्रीउपदेशपदे
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नय रोहं काउं असोगचंदो ठिओ चिरं कालं । उत्तुंगसालकलिया नवि भज्जइ सा कहिंपि पुरी ॥ ५२ ॥ एगम्मि य पत्थावे या तं भंजिडं अपारंतो । जा सो इंतो अच्छइ ता पढियं देवयाए इमं ॥ ५३ ॥ "समणे जइ कूलवालए मागहियं गणियं लम्मिस्सइ । लाया असोगचंदए वेसालिं नगलिं लहिस्सइ ॥ ५४ ॥ हरिसविय संतवयणो पाउं अमयंव सवणपुडएहिं । वयणमिमं नरनाहो तं समणं पुच्छए लोगं ॥ ५५ ॥ अह कहमवि लोगाओ णइकूलठियं तयं विया - णित्ता । पणतरुणी पहाणं मागहियं वाहरावेइ ॥ ५६ ॥ भणइ य भद्दे ! तं कूलवालगं समणमेत्थ आणेहि । एवं करेमि तीए पडिवन्नं विणयसाराए ॥ ५७ ॥ तो कवडसाविया सा होउं सत्थेण तं गया ठाणं । वंदित्ता तं समणं सविणयमेयं पपे ॥ ५८ ॥ गिहणा हे सग्गगए जिनिंदभवणाई वंदमाणा हं । सोउं तुम्भे एत्थं समागया वंदणट्ठाए ॥ ५९ ॥ तो अजं चिय सुदिणं पसत्थतित्थं च जं तुमं दिट्ठो । एत्तो कुणसु पसायं भिक्खागहणेण मुणिपवर ! ॥ ६० ॥ तुम्हारिसे सुपत्ते निहित्तमपि दाणमचिरेण । सग्गापवग्ग सुक्खाण कारणं जायए जेण ॥ ६१ ॥ ईय भणिओ एसो कूलवालओ आगओ य भिक्खट्ठा | दिन्ना य मोयगा दुट्ठदबसंजोइया तीए ॥ ६२ ॥ तब्भोगानंतरमवि अईसारो से दढं समुप्पन्नो । तेण विवलोsतरंतो काउं उचत्तणाईपि ॥ ६३ ॥ तीए भणियं भयवं ! उस्सग्गववायवेइणी अहयं । गुरुसामिबंधुतुलस्स तुझ जइ किंपि पडियारं ॥ ६४ ॥ काहं फासुगदधेहिं, होज्ज एत्थवि असंजमो कोइ ? । ता अणुजाणसु भंते! वेयावच्चं करेमित्ति ॥ ६५ ॥ पगुणसरीरो संतो पायच्छित्तं इहं चरिज्जासि । अप्पा हि रक्खियबो जत्तेणं जेण भणियमिणं ॥ ६६ ॥ १ क. इय जिणभणिओ ख. जिणभणिभो ।
कूलवालगद्द ०
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