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श्रीउपदे
कुणइ?॥८॥ सा भणिया जणणीए अइपेमपरबसो पई तुझं । जं कुणसि तं पमाणं सर्व तुह तस्समाभाहि ॥९॥ ब्राह्मणभाशपदे दबीयाए पुण भणियं पहारसमणंतरं मणागं सो । झिंखणकारी जाओ खणंतराओ उवरओ त्ति ॥१०॥सा वि य तीए देिवद
भणिया तमए विहिए अरुच्चमाणम्मि । होही झिंखणकारी नो अन्नं निग्गहं काही ॥ ११॥ तइयाए पुण भणियं तुहG तावेश्या॥१२९॥
निद्देसे मए कए संते । दूरा दरिसियरोसो बंधिय सो गेहथंभेण ॥ १२॥ कसघायसए दासी मम भासियवं च दुक्कुला चरि० तं सि । तो मे तए न कजं एवंविहकज्जसज्जाए॥ १३॥ माऊए तस्समीवं गंतुं भणियम्ह एस कुलधम्मो । जइ पुण कहवि न कज्जइ तो ससुरकुलं न नंदेइ ॥ १४ ॥ इय तोसिय तच्चित्तं भणिया धूया जहेव देवस्स । तह पट्टिजासि न अन्नहा इमो तुह पियकरो त्ति ॥ १५ ॥ जामाउयचित्तवियाणणत्थमेयासि सिक्खणा एसा । परिणामियबुद्धिफलं माहणभज्जाए विन्नेयं ॥१६॥ __ तह उज्जेणिपुरीए चउसट्ठिकलालया पुरा आसि । नामेण देवदत्ता गणिया मुणिया जणवएसु ॥१॥ भुजगजणचि-१ त्तजाणणहेउं नियमंदिरम्मि पगईए । नियवावारपराओ लिहाविया भित्तिभागेसु ॥२॥ तीए जबावारो जा तत्थ समेइ उग्घडियहरिसो। सो नियनियवावारं पलोयमाणो चिरं ठाइ ॥३॥ सा जाणियतब्भावा कहमवि तह उवयरेइ जह तुट्ठो । अइदुक्करपि नियदविणदाणमिच्छाणुगं देइ ॥ ४ ॥ एसावि य परिणामियबुद्धी जं तीए चित्तणाणत्थं । पयईओ है लिहियाओ तहा कओ दवसंजोगो॥५॥ इति ॥
अथ गाथाक्षरार्थ:-'परिणामिया य' त्ति पारिणामिवयां बुद्धौ ज्ञातं वर्तते । काऽसावित्याह-'महिला' भार्या ।
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