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वति दसावि पुवाणि ॥ २२८॥ तेसिं संति सयासे पहिओ संघाडओ तदंतम्मि । सो सुमिणं रयणीए पासइ जह सीरपडिपुणो ॥२२९॥ पीओ केणवि आगंतुगेण एसो पडिग्गहो मज्झ । पत्ते पभायसमए कहिओ साहुण सो गुरुणा ॥ २३० ॥ तेवि अलद्धे लक्खम्मि अन्नमन्नं कहेउमारद्धा । सुविणफलं गुरुणा भणियमेयमत्थं न याणेह ॥ २३१॥ कोवज महामेहो पडिच्छओ एहिहित्ति सो मज्झ । सवं पुषगयसुयं घेच्छी फलनिच्छओ एस ॥ २३२॥ भयपि वइरसामी तं रयणिं तप्पुरीए बाहिम्मि । वुत्थो उकंठियमाणसाण पत्तो वसहिमेसि ॥२३३ ॥ कुमुयवयणेण व चंदो मेहो व सिंहडिमंडलेण मणे । संतुटेण स दिट्ठो सुयपुबो सूरिणा तेण ॥ २३४ ॥ नाओ जहेस वइरो महिमंडलमज्झपसरियजसोहो । भुयजुगपसारपुवं सघंगालिगिओ विहिओ ॥ २३५ ॥ पाहुणगविणयविहाणपुवर्ग सो मुणीहिं पडिवन्नो। पढियाणि कमेण दसाणि तेण पुवाणि सवाणि ॥ २३६ ॥ जत्थुद्देसोऽणुन्नावि तत्थ किज्जइ इमो कमो अस्थि । किल दिट्टिवायसुत्तत्थतदुभयस्सा तओ पत्तो॥ २३७ ॥ सीहगिरी वइरोवि य सिरिदसपुरनगरमह समाढत्ता। आयरियपयपइट्ठा वदरस्सा सीहगिरिगुरुणा ॥२३८॥ ते पुषसंगया जंभगा सुरा कहवि तत्थ संपत्ता । विहिओ महामहो तेहिं पवरमरपुप्फगंधेहिं ॥ २३९ ॥ उवलद्धमुणिवइपओ सारयरविमंडलं व अहिययरं । फुरियपयावो जाओ भवियंभोरुहपमोयकरो ॥२४० ॥जओ ॥ वासावजविहारी जइवि हु नवि कत्थए गुणे नियए । अकहतोवि मुणिज्जइ पगई एसा गुणगणाणं ॥ २४१ ॥ भमरेहिं महुरेहि य सूइज्जइ अप्पणो य गंधेणं । पाउसकालकयंवो जइवि निगूढो वणनिगुंजे ॥ २४२॥ कत्थ व न जलइ अग्गी कत्थ व चंदो न पायडो लोए ?। कत्थ व वरलक्खणधरा न पायडा हुंति सप्पु
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