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णाएजगिरो गरं व परवजणिज्जो य॥१०४ ॥ अह तिबछहाभिहओ सूयारे आढवेइ जावइया। इह संति भोयणविही| मवे ते उवणमेह महं॥१०५॥ भोयणकालम्मि उवदिएस सधेसु भोयणविहीसु । पेच्छणगागयलोगाहरणेणं जेमिउं
लग्गो॥ १०६ ॥ जह पेच्छणगे मिलिएवि दुधले बलियगाउ पेल्लेंति। तह भुत्तेवि असारे साराहारो लहइ ठाणं॥१०७॥ 13 भुत्ततिकामाहारो विसूड़गाए निसाइ तीएवि । नियपरियणावहीरियकिरिओ अहे सो मओ संतो ॥ १०८ ॥ रुद्दज्झाण
परवसो सत्तमपुढवीए अप्पइहाणे । णेरइओ संजाओ वाससहस्सं कयवओवि ॥१०९॥ वलियत्तमवलियत्तं न कारणं मुद्धसमणभावस्स । जं पुंडरीयसाह वलिओवि सुरालयं पत्तो॥११०॥चम्मद्विसेसदेहो कंडरिओ कडुयनिविडतवव|सओ । रुद्दज्झाणपहाणो निहणगओ नारओ जाओ॥ १११॥ तज्झाणनिग्गहो इह पहाणहेऊ जइत्तणस्स भवे। खीणतहै। णुणो वि मुणिणो तधिरहो दुग्गइकरो त्ति ॥ ११२ ॥ वेसमणो तं निसुणिय तुट्ठमणो मुणइ जाणिओ मज्झ । अज्झव
साओ केरिसमिमस्स नाणं पहाणमिणं ॥ ११३ ॥ वंदित्ता भगवंतं गओ तओ तत्थ जंभगो देवो । एगो वेसमणसमो 31 पुंडरियझयणमुच्चरियं ॥ ११४ ॥ नायाधम्मकहासुं सिटुं पंचसयगंधपरिमाणं । अवधारेइ लहेइ य सुद्धं सम्मत्तमह एसो F॥ ११५ ॥ पंचसु सएसु वरिसाणमइगएसुं जिणाओ वीराओ। किंचूणेसु स जंभगदेवो चविऊण सुरलोगा ॥ ११६ ॥
तुंबवणसन्निवेसे अवंतिविसयम्मि धणगिरी नाम । इन्भसुओ आसि नियंगचंगिमाविजियसुररूवो ॥११७॥ सो सुय3जिणिंद धम्मो वालत्ताओ वि सावगो जाओ । भवभीरू पवइ वंछइ निच्छिन्नविसयतिसो ॥ ११८॥ संपत्तजोयण
भरस्स तस्स कण्णं वरंति जंपियरो। तं तं सो पडिसेहइ अहं जह पबइउ कामो॥ ११९ ॥धणपालो नाम पुरे इन्भ