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केवलिपरिसं भयवं पि य गोयमो जाव ॥४५॥ तिपयक्खिऊण जिणं पडिओ पाएसु उढिओ भणइ । वच्चह कत्थ इओ एय मामिपयपणमणं कुणह ॥ ४६॥ वागरिओ जयपहुणा मा गोयम! केवलीणिमाणि तुमं। कुण आसायणमातुट्ठमाणमो ते खमावेइ॥४७॥ तो संवेगमइगओ चिंतेइ न मे भविस्सए सिद्धी । एवमइदुक्करतवो वि केवलं जेण न लहामि ॥४८॥ पत्तो य सामिणा पुवमेव वागरियमासि परिसाए। मणुयसुरासुर सहियाए जो सएणं पभावेण ॥ ४९॥ अट्ठावयमारोहइ वंदेइ य चेइयाणि विणयपरो । तेणेव भवग्गहणेण सिज्झई सो न संदेहो ॥५०॥ तबयणसवणहरिसाऊरियचित्ता परोप्परं देवा । साहति एवमेवं सवत्थ इमा कहा जाया ॥५१॥ अट्ठावयम्मि नट्ठावयम्मि जइ कहवि होज मे गमणं । इय जा चिंतइ भयवं गोयमसामी सुगयगामी ॥ ५२ ॥ तो तम्मणतोसकए तावसपडिवोहकारणाए य ।
भणिओ गुरुणा अट्ठावयम्मि तं वच्च जिणविवे ॥ ५३॥ वंदेहि तत्थ सुपसत्थलक्खणे विणयणमिरसवंगो । ताहे सो 8 मुणिसीहो हट्ठो तुट्ठो जिणं नमिउं ॥ ५४॥ पत्तो अट्ठावयपायमूलमायन्निऊण जिणभणियं । अह तिन्नि तावसपह ताकोडिन्न तहावरो दिन्नो ॥५५॥ तइओ पुण सेवाली पत्तेयं ते य पंचसयकलिया। चलिया गिरिमारुहि चउत्थभत्ता
यमाणम्मि ॥५६॥ पढमो कंदे मूले य जेमई चित्तमंतए वीओ। छट्टतवंते भुंजइ परिसडिए पंडुरे पत्ते ॥५७॥ तइओ हापुण सेवालं सुकं सयमेव अट्ठमतवंते । ते मेहलासु लग्गा कमेण पढमाइयासु तिसु ॥ ५८॥ दिवो य तेहिं भयवं गोयदाममामी समुद्धरसरीरो। कह एसो इयरूवो गिरिम्मि एयम्मि लग्गिहिही? ॥ ५९॥ भयवं जंघाचारण लद्धी लूयापुडंपि
काऊण । निस्सामयमुप्पयए पेच्छंताणं स तेसिं खणा ॥६०॥ उप्पइओ एस इमो एइ पलोयंति जाव उपफुल्ला । ताव