________________
परिभणियं ॥ ६५ ॥ उदयणनामा वच्छाहिनायगो गायउत्ति आणीओ । कह सो वासवदत्ता पज्जोयसुया कलाकुसला ॥ ६६ ॥ तकालं गंधवे नत्थि पहाणोऽत्थ उदयणादन्नो । ता सो घिप्पर अभओ भणाइ एईए सिक्खत्थं ॥ ६७ ॥ सो पुण केण उवाएण धिप्पिही पुच्छिओ भणइ अभओ । सो जत्थ करिं पेच्छइ गायंतो तत्थ तं सवसे ॥ ६८ ॥ आणीय बंधट्टाणं पावेइ न जाणइ य सो खित्तो । इमिणावि जंतमइओ हत्थी काराविओ मुक्को ॥ ६९ ॥ विसयंते चारिज्जइ वणयरलोयाओ लद्धवृत्तंतो । वच्छाहिवो ससेणो गओ तहिं तस्स पेरंते ॥ ७० ॥ मुक्को खंधावारो सयं च कलरावपूरि| यदियंतो । जा लग्गो गाएउं ठिओ करी लेप्पगमउधा ॥ ७१ ॥ जा संनिहाणमेसो तस्स गओ ताव पुवठविएहिं । गहिओ | पच्छन्ननरेहिं पाविओ नयरिमुज्जेणिं ॥ ७२ ॥ भणिओ पज्जोएणं काणा धूया ममत्थि सा गेयं । तं सिक्खवेहि पेच्छसु | मा जेणं लजिया होही ॥ ७३ ॥ तीएवि साहियमिमं एसो अज्झावगो विणट्टतणू । कुट्टेण सुट्टु वहुं मा होज्जा कयायरा | वच्छे ! ॥ ७४ ॥ सो जवणियंतरं तं सिक्खावेइ तस्स सद्देण । सा हीरइ अच्चंतं गोणिसरेणं व वणहरिणो ॥ ७५ ॥ एसो कुट्टित्ति परं न विलोयइ सा अमंगलं होही । अचंतं कोउगपरा सा परिचिंतइ कहं एसो ॥ ७६ ॥ दट्ठोत्ति विमूढा सम्मं सरसंगहं कुणइ न जया । रुट्टेण तेण भणिया विसंठुलं पढसि किं काणे ! ॥ ७७ ॥ सावि सरोसा भासइ किं | कोढिय ! अप्पयं न याणेसि । णूणं जारिसओ हं कुट्ठी काणावि तह एसा ॥ ७८ ॥ इय परिभाविय फालियअंतरपडओ | पलोयए जाव । अकलंक सोमस बंगसुंदरंमि तयं नियइ ॥ ७९ ॥ वम्महमणहररूवो सपिवासं तीए सोवि निज्झाओ । पोढपणयाण ताणं मिलणा अञ्चग्गला जाया ॥ ८० ॥ नवरं कंचणमाला दासी धाईय सच्चिय मुणेइ । नउ अन्नो कोवि
|