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श्रीउपदेशपदे
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हंतो । पयनहछलाउ खंडीभावं कहमण्णहा वहइ ॥ १४७ ॥ इस्से नियंवबिंबं जियसुरसरिविउलवालुयापुलिणं । उवभाइ तिजयजय संतकुसुमसर सयणफलगं व ॥ १४८ ॥ मण्णे अणंगकरिणो निविडकरग्गहनिपीडणातणुयं । मज्झं मज्झट्ठियरोमराइमिसदाणलेहमिमं ॥ १४९ ॥ एसा सहावगहिरा नाही एयाहि नज्जइ जगेण । जयवेहकारिणो कूविगव मयरद्धयरसस्स ॥ १५० ॥ तिवलीमिसेणिमीए उयरे रेहति तिण्णि रेहाओ । मन्त्रे विहिविहियाओ नियतणुनिज्जियतिहुयणाए ॥ १५१ ॥ उद्वैतपीणथणमंडलस्स वच्छत्थलस्स को सोहं । लहइ इमीए जं समरसारजुयजूयफलगसमं ॥ १५२ ॥ कप्पतरुणो लाउ दोवि रेहंतिमीए बाहूओ । करपल्लवाउ कररुह कुसुमाउ सणिद्धरूवाओ ॥ १५३ ॥ सोहइ वयणमिमीए कसिणुज्जलकलियंकुंतलकलावं । ससिमंडलं व उवरिं घडंतअइकसिणघणपडलं ॥ १५४ ॥ दीहरनयणनईए वम्महवाहो निरंतरं हा । कहन्ना तडीए दीसइ भमुहा धणुलयब ! ॥ १५५ ॥ गोरे मुहम्मि एईइ भाइ अहरो निसग्गसोणपहो । रत्तोप्पलपत्तचच धवलकमले कयनिवासो ॥ १५६ ॥ सवणा सहंति एईई नयणसरिपवहपडिखलणकुसला । भमुहाधअंते वम्मवाहस्स पासव ॥ १५७ ॥ अचो जं जं दीसइ अवयवरूवं इमाइ देहम्मि । तं तं मणणिव्वुइकारि होइ सुरतरुलया ॥ १५८ ॥ दिट्ठो तीए अम्भुट्टिओ य दिण्णं च आसणं तत्तो । पुट्ठा सा तेण तुमं का सुंदरी एत्थ परिवससि ? ॥ १५९ ॥ सज्झसरुज्झतगलाइ तीइ परिजंपियं महाभाग ! । गरुओ मह वृत्तंतो न तरामि सयं परिकहेउ ॥ १६० ॥ ता कहसु तुमं नियमेव वइयरं को तुमं इह कहं वा ? । गंतुं पयट्टओ होसि सोउमेवं तओ कुमरो ॥ १६१ ॥
१ क 'भवइ' ।
१ चोलकोदारणम्.
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