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न नरंधारि जाहे ॥ १०२ ॥ ताहे ते ऊसरिया एक मोत्तॄण थूलभदमुणिं । थोवावसेसए सइ झाणे अह पुच्छिओ गुरुणा ॥ १०३ ॥ न किलिम्मसि तं स भणइ न कोवि भगवं ! ममं किलामेत्ति । तो खमसु किंचि कालं तो दिवस आए म ॥ १०४ ॥ पुच्छङ सूरिं भयवं । कित्तियमित्तं मए इहाधीयं । अट्ठासीसुत्ताई उवमा मेरूसरिसवेहिं ॥ १०५ ॥
काळाओ ऊणगेण कालेन पढिहिसि सुहेण । सर्वपि दिठिवायं पढिया य कमेण दस पुधा ॥ १०६ ॥ वत्थूहिं दोहिं ऊणा मथूलभद्दा गुरू विहरमाणा । पत्ता पाडलिपुत्तं ठिया य वाहिं तदुज्जाणे ॥ १०७ ॥ जक्खाइयाउ सत्तवि भइणीओ धूलमदसाहुस्स । गुरुणो जेट्टज्जस्स य समागया वंदणनिमित्तं ॥ १०८ ॥ वंदिय गुरुं कहिं सो जिट्टज्जो | पुच्छिओ गुरु भणइ । देउलियाइ इमाए गुणमाणो चिट्ठइ पहिट्ठो ॥ १०९ ॥ आयंतीओ दट्ठूण ताउ इड्ढीइ दंसणनिमित्तं । मीहागारो जाओ सो तं ताओ नियच्छित्ता ॥११०॥ तट्टाउ गुरुसयासे भणंति सीहेण खइयगो भंते ! । भाया, गुरुणा भणिया थूलभद्दो न सो सीहो ॥ १११ ॥ पडियागया य वंदिय ठिया तओ पुच्छिया कुसलवत्तं । कहियं जह पपइओ सिरिओ पयोववासेणं ॥ ११२ ॥ काराविएण अम्हेहिं सो मओ अमरवासमणुपत्तो । सिरिवज्झाभीयाहिं तवेण वह देवया सित्ता ॥ ११३ ॥ नीया महाविदेहं जह पुट्ठा तत्थ तित्थरायाणो । दो अज्झयणाऽऽणीया एगं भावणविमुतवरं ॥ ११४॥ एवं वंदित्ताणं गयाउ बीए दिणम्मि संपत्ते । नवसुत्तुदेसत्थं उबट्टिओ सो, न उद्दिसइ ॥ ११५ ॥ जा सूरी, को हेक तमजोगोसि त्ति तेणिमं नायं । कल्ले कओ पमाओ जो सो एवं वियंभेइ ॥ ११६ ॥ न पुणो काहामि भणइ सूरिणो जइवि नो तुमं कुणसि । अन्ने कार्हिति तओ किच्छेण कहिंचि पडिवन्नं ॥ ११७ ॥ चत्तारि उवरिमाई पुद्याणि