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॥ २७ ॥ मुत्तेसु झाणसज्झायमाइकिच्चेण खीणदेहेसु । सूरिनिवेसु स पावो समुडिओ कढिया कत्ती ।। २८ ॥ सा पुवं पिय ग्रढा आसि रजोहरणमाइउवहिम्मि । दिन्ना कंठपएसे रन्नो, नट्ठो य संभंतो॥ २९॥ सा रुहिरेण विलग्गा पासेणं घीयगेण निक्समइ । छिन्नो खणेण कंठो तो तीइ अकुंठधाराए ॥३०॥ उवचियतणुत्तणाओ रन्नो रुहिरछडाहिं वियडाहिं। सिसो देहे सुरी सहसा निदक्खयं पत्तो॥ ३१ ।। असमंजसं नियच्छइ सव्वं तं चिंतियं तओ तेण । णूण कुसीसेण कयं
कहाणहाऽदसणं तस्स ॥ ३२॥ कह कल्लाणकलावेकमूलमुस्सप्पणा जिणमयस्स । पगया, कह मालिण्ण अखालणिज्ज इमं पत्तं #॥ ३३ ॥ भणियं च,-"अन्नह परिचिंतिज्जइ सहरिसकं दुज्जएण हियएण । परिणमइ अन्नहच्चिय कज्जारंभो विहिवसेण"
॥३४॥ता किं एत्तो उचियं नूणं नियपाणचागकरणेणं। एसोधम्मकलंको दुरंतओ मे समुत्तरइ॥३५॥काऊणं तकालोचियाई कजाई धीरचित्तेणं । दिन्ना सा नियकंठम्मि कत्तिया कंकलोहस्स ॥३६॥ जाव पभाए सेज्जापालगलोगो निभालए मालं। दिठो राया सूरी दोवि य पंचत्तणं पत्ता ॥ ३७ ॥ तत्तो संखुद्धो सो अम्ह पमाओ इमो त्ति मन्नंतो। तुहिको चिय चिट्ठए जा ता सहसा पुरे तत्थ ॥ ३८॥ जाओ जणप्पवाओ जह एयमणुट्ठियं कुसीसेण । णूणमभव्यो एसो कवडेण वयं पवनो त्ति ॥ ३९॥ पत्ता ते दोवि दिवं इओ य पहावियदुयक्खरो नंदो। न्हावियसालाइ गओ पत्थावादागयस्म वहिं॥ ४०॥ उज्झायरस निवेयइ जहा मए अज सुविणओ दिट्ठो। रयणीविरामसमए जह नगरमिमं समंतेहिं ॥४१॥ आवेढियं समंता एत्तो सुविणयफलं परिकहेहि । सो सुविणयसत्थण्णू तं नेइ घरं तओ तत्थ ॥४२॥ धोयसिरस्स निया मे दिन्ना घूया परेण विणएण । उग्गच्छंतो व्य रवी सहसा सो दिपिउं लग्गो ॥ ४३ ॥ सिवियाइ समारूढो हिंडइ जा
TOSHOOROOSIOS