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श्रीउपदे
शपदे
॥७३॥
*IALISTISKOLOSSOMOSHI
| निच्चआणाइभग्गेण ॥११॥ उज्जेणिराइणा नथि एत्थ सो कोइ अंकुसं अम्हं । जो इममुदायिरायं अवणेजा सिरस- अर्थशास्त्रमारूढं ॥ १२॥ तो तस्सेवगरन्नो भणियं पुत्तेण गरुयखारेण । साहेमि इमं कजं जइपिढिवलं तुम वहसि ॥१३॥ तो तेण वा० कल्पअणुनाओ स कंकलोहस्स कत्तियं घेत्तुं । चलिओ पाडलिपुत्ते पत्तो य कमेण तो रन्नो ॥ १४ ॥ विहिया सबाहिरब्भ-18 कमंत्रिक तराइ परिसाइ सेवगजणस्स । उचिया सेवावित्ती नय लद्धो चिंतियावसरो॥ १५॥ सो पुण उदायिराया अट्ठमिचउद- कथा. सिदिणेसु सव्वाई। मोत्तूण रजकजाई पोसह कुणइ उवउत्तो ॥ १६ ॥ सिरिधम्मघोसनामा सूरी अच्चंतखीणजंघवलो। 5 ठाणंतरे विहारं काउँ असहो वसइ तत्थ ॥ १७॥ साहुसमीवे पोसहकरणे रन्नो बहू अवाओत्ति । तत्थेव रायभवणे पो
सहदिवसेसु सो जाइ ॥ १८॥ भणिओ नियपरिवारो रन्ना, साहूण इंतजंताण । रयणीए दिवसम्मि य खलणा केणइ न कायव्वा ॥ १९॥ नाओ एस वइयरो तेणं दुट्ठाभिसंधिणा धणियं । रायसुएणं एए इत्थं अनिवारियप्पसरा ॥२०॥ तो सो वज्जिय सेवावित्तिं आवजिऊण गुरुचित्तं । अइदढसढत्तविणओवयारसारो गहियदिक्खो ॥२१॥ भावसमणो व्व
जाओ विणयरओ त्ति य पइट्ठियं तस्स । नामं वच्चइ कालो एवं छलचिंतणपरस्स ॥ २२॥ सूरीवि य गीयत्थे थिरव्वए N नायजाइकुलसीले । साहू अप्पसहाए अप्पे निवभवणमाणेइ ॥ २३ ॥ सो निच्चं चिय पगुणत्तमप्पणो आयरेण दंसेति। 5 परमहिणवधर्म भाविऊण वारेइ तं सूरी ॥ २४ ॥ अन्नम्मि दिणम्मि मुणी कजेण गिलाणपाहुणाईण । अच्चंतवाउलत्तं पत्ता पउणोय सो जाओ॥ २५॥ बहुदिवसदिक्खिओच्चिय ता सोवि सहायओ गुरुहिं कओ। पत्ता रायकुलब्भंतरा
॥७३॥ लसालाइ रयणिमुहे ॥ २६॥ पडिवनं पोसहमोसह व रोगाउरेण नरवइणा । विहिओ तकालोचियववहारो वंदणाईओ